हाल ही मेंं इंडियन वीमेन प्रेस क्लब ने प्रसिद्ध लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता महाश्वेता देवी की स्मृति में एक भव्य आयोजन किया. इस अवसर पर अलग अलग क्षेत्र की नामी हस्तियों ने महाश्वेता देवी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर अपनी मुलाकातों और यादों को साझा किया। वरिष्ठ साहित्यकार नासिरा शर्मा, सांत्वना निगम, अपूर्वानंद, सोहेल कपूर, अंतरा देवसेन और अमिति सेन ने अपने अपने अनुभव सुनाये. महाश्वेता देवी के जीवन कला में रिकॉर्ड किये गए उनके बंगला इंटरव्यू का विडियो दिखाया गया, जिसें अंग्रेज़ी के सब-टाइटल्स थे.
एक महान हस्ती जिसने अपने जीवन कला में कई सामाजिक बंधन तोड़े और साथ ही नए आयाम खड़े किये. यानी उन्होंने जो तोडा उसके विघटन से हुए नुकसान की (अगर कोई नुकसान हुआ हो तो) भरपूर भरपाई भी की.
उनके अपने ही शब्दों में,” मैंने बहुत काम किया है. मैंने ढेरों ढेर कपडे धोये हैं, बहुत बहुत जनों के लिए खाना पकाया है, बड़े-बड़े और ढेरों ढेर बर्तन मांजे और धोये हैं.”लेखन उनके लिए इसी तरह का एक काम ही था. जिसे वे बेहद लगन और प्रेम के साथ करती थी. जीवन जीने के कई ज़रूरी तत्वों की तरह, जैसे सांस लेना और भोजन करना.
महाश्वेता देवी ने एक सामान्य मध्यवर्गीय जीवन जिया. उसे पूरी तरह जिया. उसे पूरी तरह स्वीकार किया. और फिर उसकी लाचार और नाकारा बंदिशों को तोड़ कर समाज को ख़ास कर स्त्री को एक नयी राह दिखाई. एक ऐसी राह जिस पर वे खुद चलीं. उसके कांटो से अपने पांवों को बिधवाया, पीड़ा सही, बहते खून को खुद ही साफ़ किया और साथ ही कई और जीवन सवारे.
उन्होंने अपने रोज़मर्रा के जीवन से स्त्री की आज़ादी को बहुत खूबसूरती से परिभषित किया. अपनी पहली शादी के नाकाम हो जाने के बाद वे कहती हैं, “मैं अब आज़ाद हूँ. और मुझे बड़ा अच्छा लगता है. कोई बंदिश नहीं. किसी को यह बताने की पाबंदी नहीं कि कहाँ गयी थी, क्यूँ गयी थी, किसके साथ गयी थी.”पुरुषों के लिए जो बाते सामान्य होती हैं उन्हें पाने के लिए स्त्रियों को कितना कड़ा संघर्ष करना पड़ता है इसकी वे जीवंत उदाहरण थी.
साधारण कद की साधारण दिखने वाली बेहद असाधारण व्यक्तित्व की स्वामिनी महाश्वेता देवी ने ‘हज़ार चौरासी की माँ‘ लिख कर जो ख्याति हासिल की वह ‘हज़ार चरौसी की माँ‘ ने जो आयाम खड़े किये उसके मुकाबले में शायद कम ही रही होगी। उनके पोते तथागत जो स्वयं एक पत्रकार है, ने भी अपने कई संस्मरण इस मौके पर साँझा किये. किस तरह एक दादी माँ अपने पोते को लाड करती थी. किस तरह जब जवाबदेही का वक़्त आता था तो कठोर अभिभावक का रूप धारण कर लेती थी. कि किस तरह उनके आख़िरी वक़्त में उनकी क्षीण देह को देख कर पूरा परिवार दुःख और लाचारी से जूझता रहा। अपूर्वानंद का अनुसार कैसे एक मध्यवर्ग की महिला मध्यवर्ग के तथाकथित संस्कारों को अस्वीकार करती है, लेकिन उसी मध्यवर्ग के कई आयामों को अपना संबल बना कर आगे बढ़ती है. और इस प्रक्रिया में समाज को बहुत कुछ नया दे कर जाती है. कैसे एक पढ़े लिखे परिवार की पढ़ी लिखी सुसंस्कृत महिला आदिवासिओं के जीवन को बेहद करीब से देख कर उनमें से एक हो कर, उन पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ पूरे सिस्टम और सरकार के खिलाफ खडी हो जाती है. ये एक महाश्वेता देवी ही कर सकती थी. उन सा दूसरा उदाहरण खोजने से भी नहीं मिलेगा।