आपाधापी की इस दौड़ में देश के बुजुर्ग अकेले पड़ते जा रहे हैं। उन्हें न तो अपनों का सहारा मिल पा रहा है और न ही पर्याप्त देखभाल। समय पर डॉक्टर नहीं मिलता तो दूसरी ओर बुढ़ापे में उन्हें अपने खर्च के लिए बच्चों पर निर्भर रहना पड़ता है। यही बात उन्हें मानसिक और शारीरिक तौर पर तोड़ देती है। एजवेल फाउंडेशन द्वारा किए गए एक सर्वे में यह बात सामने आई है। सर्वे में कहा गया है कि देश में हर चौथा बुजुर्ग अकेला है।
फाउंडेशन के अध्यक्ष हिमांशु रथ का कहना है कि मई जून में तीन सौ कार्यकर्ताओं ने देश के बीस राज्यों में यह सर्वे किया है। इसमें दस हजार बुजुर्गों से बात की गई है। सर्वे में सामने आया है कि हर चौथा बुजुर्ग आज अकेला है। इनका प्रतिशत 23 है। हर दूसरा बुजुर्ग, जिनका प्रतिशत करीब 48 है, वह अपनी पति या पत्नी के साथ रहता है। 26 फीसदी बुजुर्ग ऐसे हैं जो अपने परिवार के साथ रहते हैं। शहर में अकेले रहने वाले बुजुर्गों की संख्या 25 प्रतिशत है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह प्रतिशत 21 है।
सर्वेक्षण के दौरान एक दिलचस्प बात यह भी सामने आई है कि बड़ी संख्या में बुजुर्ग अकेले या फिर अपने जीवन साथी के साथ रहना पसंद करते हैं। करीब 36 फीसदी बुजुर्ग मानते हैं कि वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं। इसके अलावा 68 प्रतिशत बुजुर्गों का कहना है कि वे वैचारिक तौर पर आजाद हैं। इनमें 60 फीसदी ने मनोवैज्ञानिक आजादी, 69 प्रतिशत ने सामाजिक आजादी और 61 फीसदी बुजुर्गों ने शारीरिक तौर पर आत्मनिर्भर होने की बात कबूली है।
अधिकांश बुजुर्गों को चिकित्सा देखभाल से वंचित रहना पड़ता है
सर्वेक्षण में पता चला है कि 61 प्रतिशत बुजुर्गों को दीर्घकालिक चिकित्सा नहीं मिल पा रही है। बिस्तर पर पड़े 68 फीसदी बुजुर्गों ने कहा है कि उनके लिए घर में मनोरंजन का साधन होना चाहिए। हिंमाशु रथ का कहना है कि बुजुर्गों को आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनाने की आवश्यकता है। इसके लिए परिजनों, समुदाय एवं सरकार के स्तर पर पहल करने की जरूरत है। देश में बुजुर्गों की आबादी करीब 13 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी है।