अंगिरा के चरित्र में स्त्री के आक्रोश को अभिनय से मुखर करता कल्पना का अभिनय

  •  सूर्यकांत तिवारी

  • suryakantरंग प्रवाह नवीनतम प्रस्तुति  अंगिरा देखने का मौका मिला। वैसे इस नाटक के कलाकार तथा नेपथ्य कर्मियों मे से अधिकाँश मेरे बहुत ही करीबी हैं या यूँ कहें कि मेरे सहकर्मी है…वर्षों से इनके साथ काम करने का सौभाग्य रहा है। नाटक की पृष्ठभूमि नारी केन्द्रित है…आज के पुरूष शासित समाज में एक नारी का आक्रोश…

आज की नारी मैथिली शरण गुप्त की अबला नारी..”अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में पानी” नहीं रह गयी है बल्कि वो अपने हक की लड़ाई लड़ना जानती है…प्रतिवाद और प्रतिशोध की ज्वाला उसके अन्दर भी धधकती है।
नाटक “अंगिरा” की कहानी एक नारी के अंतरद्वन्द की कहानी है..जिसके चरित्र पर बचपन से सामाजिक रूढवादी प्रवृत्तियाँ थोप दी जाती है..खाना, पहनना, उठना, बैठना सबकुछ…
एक ही घर में एक तय समय सीमा के भीतर एक लड़की और एक लड़का रहते है जो एक दूसरे से अपरिचित है…बचपन से अपने आस-पास तथा अपने घर में हुए..व्यवहार को अंगिरा भूल नहीं पाती है…और कभी-कभी तो उद्विगन हो उठती है…जैसे किसी दूसरे लोक की प्राणी हो…
अचानक एक दिन मोएज़ घर आता है..और अपनी कुर्सी पर अंगिरा को बैठे पाता है…आगे की कहानी विभिन्न नाटकीय मोड़ से गुज़रती हुई..
आगे बढ़ती है…नाटक के अंत में जब दरवाज़े पर दस्तक होती है….अंगिरा मोएज़ को रोक कर स्वयं आगे बढ़ती है..नारी चरित्र के विभिन्न रूप को दर्शाती अंगिरा…जहाँ…धधकती ज्वाला है…वही ज़रूरत पड़ने पर शीतल..निर्मल सरीता सी प्रवाहित हो सकती है….नाट्य रचना.. प्रो. गौतम चट्टोपाध्यायका है..और निर्देशन काशी वासी..जयदेव दास ने किया है..
एक संक्षिप्त वार्तालाप के दौरान यह पूछने पर की “अंगिरा” ही क्यों ?..कल्पना ने बताया कि जयदेव कुछ और नाटक भी लेकर आये थे लेकिन कुछ न कुछ समस्या आ जाती थी।

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नाटक कम पात्रों को लेकर करने का विचार था..अंत में “अंगिरा” का चयन सर्वसम्मति से हुआ….
अंगिरा के चरित्र में खुद कल्पना है..
एक नाट्य कर्मी होने के नाते नाटक तैयार करने और उनमें आने वाली परेशानियों से मैं पूरी तरह वाकिफ़ हूँ…
रिहर्सल की जगह, समय आदि…और जब बात एक Working lady की हो तो हम समझ सकते है..यह कितना दुरूह कार्य हो जाता है….घर, परिवार, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और अपना कार्य क्षेत्र…इन सबसे सामनजस्य बैठाकर नाटक में पूर्ण योगदान देना।
वाकई बहुत मुश्किल काम है…लेकिन प्रचलित कहावत के अनुसार..”जहाँ चाह वहाँ राह” जब कुछ करने की सच्ची लगन हो..रास्ते खुद ब खुद बनते चले जाते है…रिहर्सल के लिए कल्पना ने अपने घर में ही जगह दी..सुबह रिहर्सल के लिए था…शाम परिवार के लिए…इस प्रक्रिया में कल्पना के परिवार का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है…पति विक्रम झा जो इस नाटक के तकनीकी सलाहकार भी है संपूर्ण सहयोग किया है.. नाटक का प्रकाश संयोजन संजीव बन्द्योपाध्याय ने किया है..संजीव एक कुशल अभिनेता के रूप में जाने जाते है..प्रकाश संयोजक के रूप मे इनका पहला काम है..जो इन्होंने कुशलता पूर्वक किया है.. नृत्य संयोजन  पायल पॉल तथा ध्वनि संयोजन कोयल का है। पार्श्व ध्वनि रायपुर आकाशवाणी की प्रोग्राम प्रेजेंटर श्रीमती अनीता सिंह की है।
अंगिरा के रूप में कल्पना के नये अवतार को देखकर दर्शक कहीं खो जाते है….और नाटक समाप्त होने पर तंद्रा टूटती है….फिर पिछली दुनिया को टटोलने की कोशिश करते है जहाँ कुछ देर पहले हम सफर कर रहे थे….
अभिनय की बारीकियाँ कल्पना जानती है, समझती है..ये अभिनय जीवन में कई प्रतिष्ठित निर्देशकों के साथ काम कर चुकी है…विशेषकर रंगकर्मी ..उषा गांगुली के साथ..इनके पूर्व नाटक “रूदाली” “बदनाम मंटो” “काशीनामा” में भी इन्होंने अपने अभिनय की छाप छोड़ रखी है…अंगिरा का अभिनय इनके अभिनय जीवन का महत्वपूर्ण पड़ाव है..और हमेशा याद किया जाता रहेगा…जयदेव एक कुशल अभिनेता के साथ..साथ एक कुशल निर्देशक के रूप में अपने आप को स्थापित कर चुके हैं…इसमें कोई संदेह नहीं है…यह नाटक एक बार देखने के बाद एक बार और देखने की ललक बनी रहती है।

(लेखक वरिष्ठ रंंगकर्मी हैं)

 

 

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