स्त्री को सशक्त बनाने की राह बताती दुर्गापूजा

 मालविका घोष

malvika-ghosh

नवरात्रि के साथ माँ का आगमन हो चुका है। पंडालों में श्रद्धा और मस्ती के मिले – जुले संगम में डूबने – उतराने के लिए हम तैयार है। जहाँ देखिए, वहीं पर माँ के नेत्र दिख पड़ते हैं।

बंगाल का सबसे बड़ा उत्सव दुर्गापूजा जहाँ देवी के नौ रूपों की आराधना की जाती है। रोशनी में नहाया कोलकाता अद्भुत लगता है मगर इसकी शुरुआत बाड़ी पूजो के रूप में ही हुई थी, ये हम सब जानते हैं।

1790 का समय था, कोलकाता बस रहा था और राय बाबू के घर से हुगली के गुप्तीपाड़ा में रहने वाले 12 मित्रों ने बारवारी पूजा आरम्भ की। इस पूजा के लिए घरों से अर्थ की व्यवस्था की जाती है और अब तो बाजार से लेकर सितारे तक सब हाजिर हैं। यही पूजा सार्वजनीन भी है।

महालया देवी आगमन की सूचना है और पूर्वजों को तर्पण देने के लिए उमड़ी लोगों की भीड़ से गंगा के घाट सज उठते हैं।

महाषष्ठी, महासप्तमी, महाअष्टमी, महानवमी के दौरान पूजा का उत्साह अपने चरम पर होता है और फिर आता है विजयादशमी का दिन, जब माँ कैलाश जाती हैं। यह पक्ष देवी पक्ष कहलाता है।

maa

नवरात्रि और इस उत्सव से जुड़ी है माँ शक्ति की आराधना और स्त्री शक्ति का सम्मान। कन्याओं को पूजे जाने का दिन मगर कन्याओं और में देवी का वास है, यह बात ही आजकल उपहास लगती है जब हम छोटी बच्चियों से लेकर स्त्री का उत्पीड़न देखते हैं।

malvika-3

 

आज लड़कियों की तस्करी और बलात्कार की घटनाओं से अखबार भरे पड़े हैं और उसे सनसनीखेज बनाने की होड़ चल पड़ी है। परिवारों में भी लड़कियों से पक्षपात होता है और लड़के मान लेते हैं कि लड़कियो का कोई महत्व नहीं होता और वे उसे अपनी संपत्ति भर समझने लगते हैं तो यह दोहरी मानसिकता खीझ उत्पन्न करती है। परिवार की परवरिश और वातावरण में ही लड़कों को नहीं सिखाया जाता कि वे लड़कियों का सम्मान करें तो स्त्री को सम्मान कहाँ से मिलेगा?

malvika-story

स्त्री सक्षम है और जब कुम्हारटोली की महिला शिल्पकार चाइना पाल से मुलाकात हुई तो बहुत कुछ जानने और समझने का मौका मिला। चाइना महज 19 साल की उम्र से ही माँ की प्रतिमा गढ़ रही हैं। पिता को देखकर रुचि जगी और उनके गुजरने के बाद चाइना ने परिवार का दायित्व कंधे पर उठाया। चाइना कहती हैं कि अगर कोई काम लगन और निष्ठा से किया जाए तो कुछ भी मुश्किल नहीं है। राज्यपाल से सम्मानित हो चुकीं चाइना का काम बेहद सराहा गया है।

china-pal-malvika-1

उनकी प्रतिमा रामकृष्ण मिशन से लेकर हावड़ा व कई अन्य जगहों पर जाती हैं। कुम्हारटोली में और भी महिला मूर्तिकार हैं जिनमें माला पाल का नाम भी शामिल है। चाइना को लोग कुम्हारटोली में दशभुजा के नाम से पुकारते हैं। ये एक शुरुआत है मगर स्त्री जब खुद कदम बढ़ाएगी और अपने साथ दूसरी स्त्रियों के सम्मान की रक्षा के लिए खड़ी होगी तो सशक्तीकरण खुद ही हो जाएगा।

(आलेख और तस्वीरें एक युवा पत्रकार मालविका घोष की हैं और उत्सव को अपनी दृष्टि से देखने का प्रयास किया है। अगर आप भी अपराजिता के लिए लिखना चाहती हैं या चाहते हैं तो आपका स्वागत है। विशेषकर युवाओं को अभिव्यक्ति का माध्यम देना अपराजिता का प्रयास है)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *