ममता बनर्जी की अगुवाई वाली राज्य सरकार की ओर से हाईकोर्ट के 17 मार्च के आदेश के खिलाफ दायर एक अलग अपील में बताए गए आधारों को सुप्रीम कोर्ट ने ‘बेहद दुर्भाग्यपूर्ण’ करार देते हुए कहा कि याचिका ‘सिरे से खारिज’ करने लायक है।
चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट के निष्कर्षों में उसे कोई विसंगति नजर नहीं आती। बहरहाल, पीठ ने इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करने के लिए सीबीआई को दिए गए 72 घंटे की मोहलत को बढ़ाकर एक महीना कर दिया।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस संजय किशन कौल की सदस्यता वाली पीठ ने कहा, ‘हमने आदेश का अध्ययन किया, जिसमें यह उभरकर सामने आया कि हाईकोर्ट ने ऐसी सामग्रियों पर विचार किया जिनमें सीबीआई की ओर से प्रारंभिक जांच (पीई) करने की जरूरत थी।’ पीठ ने कहा, ‘हमें हाईकोर्ट के निष्कर्षों में कोई विसंगति नजर नहीं आती, क्योंकि याचिकाकर्ताओं के अधिकार पूरी तरह संरक्षित हैं।’
पीठ ने कहा कि यदि मामले में प्राथमिकी दर्ज करने के लिए सीबीआई को और वक्त चाहिए तो वह उचित आवेदन के साथ हाईकोर्ट का रुख कर सकती है। न्यायालय ने राज्य सरकार की अपील को तब ‘वापस’ लेने की इजाजत दी जब उसके वकील ने ऐसे आधार बताने के लिए ‘बिना शर्त माफी’ मांगी, जिनसे हाईकोर्ट पर कथित तौर पर लांछन लगते हों।