इस वर्ष के अशोक चक्र पुरस्कार विजेता हंगपन दादा पर बनी डॉक्यूमेंट्री को खूब पसंद किया जा रहा है। इंटरनेट पर जारी किए जाने के महज तीन दिन के भीतर आठ लाख लोगों ने इस फिल्म को देखा है। यह डॉक्यूमेंट्री उस बहादुर सैनिक को समर्पित है, जिसने सर्वोच्च बलिदान से पहले जम्मू-कश्मीर में अपने दम पर तीन घुसपैठियों को मार गिराया।
करीब 12 मिनट की फिल्म ‘वॉरियर्स ऑफ इंडिया’ में दर्शक 27 वर्षीय सोमेश साहा से अरुणाचल प्रदेश के सैनिक की शहादत को सहजता से जोड़ पा रहे हैं, क्योंकि दादा की तरह उनके पिता भी असम रेजीमेंट से जुड़े हुए थे।
युवा फिल्म निर्माता ने कहा, ‘मेरे पिता असम रेजीमेंट में कर्नल थे और वह एक सैनिक की मौत से तनाव में थे। एक आम भारतीय इस चीज को नहीं समझ सकता है, लेकिन एक सैन्य अधिकारी का बेटा होने के नाते सैनिकों की कहानियों से मुझे हमेशा प्रेरणा मिली है। वे मेरे अब तक के जीवन का हिस्सा रहे हैं।’
विज्ञापन उद्योग में जिंगल विशेषज्ञ माने जाने वाले सोमेश ने कहा, ‘मुझे प्रतिक्रिया के बारे में ज्यादा नहीं पता था, लेकिन मैं हवलदार दादा की वीरता को इतिहास में दर्ज करना चाहता था और इन दिनों इतिहास इंटरनेट है। मैंने अपने दो मित्रों से बात की और परिणाम आश्चर्यजनक रहा। एक सैनिक ने कहा कि ‘फिल्म ने मुझे रुलाया और उसी वक्त मुझे मुस्कुराने के लिए भी मजबूर किया।’