विशेष जरूरतमंद बच्चों को दया नहीं स्नेह और स्वीकृति चाहिए

 

अगर व्यक्ति में कुछ करने की चाहत हो और वह समाज को कुछ देना चाहता है तो उसके लिए रास्ते तमाम मुश्किलों के बावजूद खुल जाते हैं। सृजन और देने की यह छटपटाहट ही रचने का कारण बनती है। जब आप अनुभूति की संस्थापक गोपा मुखर्जी से बात करती हैं तो आपको ऐसी ही छटपटाहट महसूस होगी। कभी टीवी पत्रकार रह चुकीं गोपा अब भी पत्रकार हैं मगर अब वे अपनी इच्छा से वृत्त चित्र बनाती हैं। इसके साथ ही वे स्लो लर्नर बच्चों, डिस्लेक्सिया और विशेष रूप से प्रतिभावान बच्चों के लिए काम कर रही अपनी संस्था अनुभूति के माध्यम से जीने की राह दे रही हैं। अपराजिता से गोपा मुखर्जी की मुलाकात के अह्म हिस्से हम आपके लिए पेश कर रहे हैं –

प्र. पत्रकारिता का सफर कैसा रहा और सक्रिय पत्रकारिता से दूरी क्यों बना ली?

उ. मैं बतौर पत्रकार काफी सक्रिय रही हूँ। टीवी पत्रकार के रूप में कई मुद्दों पर काम कर चुकी हूँ मगर टीवी पर आपके मुद्दे को वह विस्तार बहुत कम मिलता है या यूँ कहूँ कि सृजनात्मक होकर काम करना किसी भी समाचार चैनल में करना मुश्किल है। मैं जिन मुद्दों को और बातों को जिस तरह से रखना चाहती थी, उसे मैं स्वतंत्र रहकर काम करके ही आगे बढ़ा सकती थी। किसी स्थापित चैनल में काम छोड़ने का फैसला आसान नहीं होता मगर मैंने किया और अब स्वतंत्र रूप से वृत्त चित्र बनाती हूँ। मैं अब भी सक्रिय हूँ।

anubhuti

प्र. आप अनुभूति संस्था के माध्यम से विशेष जरूरतमंद बच्चों को लेकर काम कर रही हैं। आप क्या महसूस करती हैं?

उ. हमारी समस्या यह है कि हम यह नहीं समझ सके हैं कि विशेष जरूरतमंद बच्चों के प्रति हमारा व्यवहार कैसा होना चाहिए। आज से 10 साल पहले विशेष जरूरतमंद बच्चों को लेकर किसी स्पष्ट परिभाषा नहीं थी, ऐसे बच्चों को मंदबुद्धि या पागल कहा जाता था मगर अब गहन शोध हो रहे हैं। समस्या के साथ उसके कारणों पर विचार किया जा रहा है। यह जरूरी है मगर उससे भी जरूरी है कि बच्चों को व्यक्तिगत रूप से प्यार और सहानुभूति दी जाए। अनुभूति जब मैंने आरम्भ की तो उसके पहले मैंने तैयारी की। प्लेथेरेपिस्ट से यह काम सीखा और तीन विशेष स्पेशिलाइज्ड कोर्स किए।

प्र. अभिभावकों की भूमिका के बारे में क्या कहेंगी?

. ऐसे बच्चे अधिकतर माँओं के पास रहते हैं। अभिभावकों का  धैर्य बहुत जल्दी खत्म हो जाता है और समस्या यही है क्योंकि जब तक एक चिकित्सक बच्चे की समस्या तक पहुँचते हैं, अभिभावक दूसरे चिकित्सक के पास चले जाते हैं। इससे बच्चे के उपचार में बाधा आती है और वह जल्दी ठीक नहीं हो पाते। सही उपचार के लिए निरंतरता जरूरी है।

प्र. सामाजिक कार्य को लेकर क्या विचार हैं?

. एक समय था जब लोग अगर दूसरों के लिए कुछ करते थे तो किसी को पता नहीं चलने देते थे मगर आज ऐसा नहीं है क्योंकि अगर किसी के लिए लोग कुछ करते हैं तो सारी दुनिया को बताते हैं। बगैर मीडिया और सेलिब्रिटी के आज सामाजिक कार्यों की कल्पना नहीं की जा सकती। मेरा  मानना है कि आज हम इन बच्चों के लिए अगर कुछ कर रहे हैं तो वह हमारा दायित्व है। अब इन बच्चों के लिए स्कूल और होम शेल्टर खोलना चाहती हूँ क्योंकि अक्सर मैंने देखा है कि बच्चों को सम्भालने के चक्कर में माता – पिता की निजी जिंदगी प्रभावित होती है और इस खीझ का असर बच्चों की परवरिश पर पड़ता है। माता – पिता की जिंदगी आसान होगी तो बच्चों की परवरिश और अच्छे तरीके से हो सकेगी।

प्र. आप क्या संदेश देना चाहेंगी?

. विशेष जरूरतमंद बच्चों को दया नहीं स्नेह और स्वीकृति चाहिए। वह चाहते हैं कि उनको दूसरे बच्चों की तरह ही स्वीकार किया जाए और यही बात समझनी होगी। अच्छे लोगों को सामने आना होगा।

 

 

शुभजिता

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One thought on “विशेष जरूरतमंद बच्चों को दया नहीं स्नेह और स्वीकृति चाहिए

  1. Dr. Ritu Ranjan says:

    Yes I fully agreed with the contents of this interview. These children shouldn’t be categorised but they have full right to live in society like other children without any discrimination.

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