देहरादून : वरिष्ठ साहित्यकार, पत्रकार व कवि चारुचन्द्र चंदोला का निधन हो गया था। उन्हें मस्तिष्काघात के कारण दून अस्पताल के आईसीयू में एक हफ्ते पहले भर्ती कराया गया था, जहां उपचार के दौरान कल देर रात उनका निधन हो गया। चंदोला जी अपने पीछे पत्नी राजेश्वरी, बड़ी बेटी शेफाली, छोटी बेटी साहित्या को शोकाकुल छोड़ गए। अपनी पत्रकारिता व कविताओं के माध्यम से व्यवस्था की कमियों पर हमला करने वाले चंदोला जी का जन्म 22 सितम्बर 1938 को म्यॉमार (बर्मा ) में हुआ। मूल रुप से पौड़ी के कपोलस्यूँ पट्टी के थापली गॉव के थे और पिछले लगभग 5 दशकों से देहरादून के पटेल मार्ग में अपने पैत्रिक आवास गढ़वालायन में रह रहे थे।
चारु चंद्र ने अपनी पत्रकारिता का सफर “टाइम्स ऑफ इंडिया ” मुम्बई से प्रशिक्षु के रूप में शुरु किया। उसके बाद मुम्बई के फ्री प्रेस जर्नल , पूना हेरल्ड , पायनियर, स्वतंत्र भारत, नेशनल हेरल्ड, अमर उजाला ( मेरठ ) , युगवाणी आदि विभिन्न पत्र पत्रिकाओं से जुड़े। वे पिछले 5 दशकों से ” युगवाणी ” अखबार व पत्रिका के समन्वय सम्पादक थे।
उनकी हिन्दी में लिखी गई कविताओं का पहला प्रकाशन हिन्दी पत्रिका धर्मयुग में हुआ। उनकी कविताएं साप्ताहिक हिन्दुस्तान, जनसत्ता में भी प्रकाशित हुई। कुछ समय पौड़ी से हिमवन्त साप्ताहिक का सम्पादन, प्रकाशन किया। एक स्तम्भकार के रूप में मन्जुल, मयंक, मनभावन, यात्री मित्र, कालारक्त, अग्निबाण, त्रिच और सर्गदिदा उपनामों से तीखे राजनैतिक व सामाजिक व्यंग्य भी लिखे। युगवाणी में सर्गदिदा उनका स्तम्भ बहुत ही चर्चित रहा था। हेमवती नन्दन बहुगुणा विश्वविद्यालय , श्रीनगर ( गढ़वाल ) के बीए के पाठ्यक्रम में उनकी कविताएं शामिल हैं। उनकी प्रकाशित कविता की पुस्तकों में कुछ नहीं होगा, अच्छी सांस , पौ, पहाड़ में कविता, उगने दो दूब हैं। उन्हें पत्रकारिता व कविता में उल्लेखनीय योगदान के लिए उमेश डोभाल स्मृति सम्मान व आदि शंकाराचार्य पत्रकारिता सम्मान भी मिले। पत्रकारिता सम्मान से उन्हें द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानन्द सरस्वती जी ने सम्मानित किया था। चंदोला जी की कविताएं जनसरोकारों से जुड़ी होती थी। जिनमें वे सीधे व्यवस्था पर चोट करते। युगवाणी के माध्यम से गढ़वाल में अनेक नवोदित पत्रकारों व कवि को संवारने और दिशा देने का काम किया। आधुनिक नई कविताओं को प्रारम्भिक दौर में उन्होंने युगवाणी के माध्यम से ही पाठकों के सामने रखा, उनकी आलोचना भी हुई। उन पर परम्परागत कविता लेखन के स्वरुप को बिगाड़ने के आरोप लगे। पर वे आलोचनाओं से विचलित नहीं हुए। हिन्दी की आधुनिक कविताओं के अनेक कवियों को तराशने का काम उन्होंने किया।