एचआईवी-एड्स पीड़ितों के साथ भेदभाव करने पर जेल की सजा और जुर्माना भी हो सकता है। साथ ही एचआईवी-एड्स पीड़ितों का मुफ्त इलाज करना अनिवार्य होगा। मंगलवार को राज्यसभा से पास एचआईवी-एड्स संशोधन बिल-2014 के मुताबिक अस्पतालों, कार्यस्थल, शैक्षणिक संस्थानों में मरीजों की सुविधा और उनकी शिकायतों को सुनने के लिए शिकायत अधिकारी नियुक्त होंगे। सरकार बिल को लोकसभा में मंजूरी के लिए जल्द पेश करेगी।
राज्यसभा में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जे.पी. नड्डा ने एचआईवी-एड्स संशोधन बिल-2014 के बारे में बताया कि ऐसे मरीजों के साथ भेदभाव करने पर तीन माह से दो वर्ष तक की सजा का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा एक लाख रुपये तक जुर्माने का भी प्रावधान है। राज्यों में कानून का उल्लंघन न हो इसके लिए हर राज्य में एक-एक लोकपाल नियुक्त किए जाएंगे।
इसके अलावा उन सभी संस्थानों में जहां 100 या इससे अधिक कर्मचारी काम कर रहे हैं, वहां ऐसे मरीजों की शिकायत सुनने के लिए एक शिकायत अधिकारी नियुक्त करने का प्रावधान किया गया है। स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि एचआईवी-एड्स मरीजों के साथ नौकरी, शैक्षणिक संस्थानों, स्वास्थ्य क्षेत्र, किराये पर मकान देने, निजी और सरकारी कार्यालय, इंश्योरेंस में यदि भेदभाव किया गया तो सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
ऐसे मरीजों को संपत्ति का अधिकार होगा और 18 वर्ष से कम उम्र के मरीजों को अपने घर में रहने का समान अधिकार होगा। नौकरी पाने और शैक्षणिक संस्थानों में मरीज को अपनी बीमारी के बारे में बताना अनिवार्य नहीं होगा और यदि मरीज जानकारी देता भी है तो उसके नाम को सार्वजनिक करने पर सजा हो सकती है।
सदन में सपा सांसद नरेश अग्रवाल ने कहा कि कानून से ज्यादा लोगों की सोच बदलने के लिए जागरूकता फैलाने पर सरकार को ध्यान देना चाहिए। वहीं बसपा सांसद अशोक सिद्घार्थ ने कहा कि युवाओं में ऐसी बीमारी पैर पसार रही है। सरकार को इस तरफ ध्यान देना चाहिए। कांग्रेस के जयराम रमेश ने कहा कि पार्टी इसका समर्थन करती है।
इसके अलावा उन सभी संस्थानों में जहां 100 या इससे अधिक कर्मचारी काम कर रहे हैं, वहां ऐसे मरीजों की शिकायत सुनने के लिए एक शिकायत अधिकारी नियुक्त करने का प्रावधान किया गया है। स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि एचआईवी-एड्स मरीजों के साथ नौकरी, शैक्षणिक संस्थानों, स्वास्थ्य क्षेत्र, किराये पर मकान देने, निजी और सरकारी कार्यालय, इंश्योरेंस में यदि भेदभाव किया गया तो सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
ऐसे मरीजों को संपत्ति का अधिकार होगा और 18 वर्ष से कम उम्र के मरीजों को अपने घर में रहने का समान अधिकार होगा। नौकरी पाने और शैक्षणिक संस्थानों में मरीज को अपनी बीमारी के बारे में बताना अनिवार्य नहीं होगा और यदि मरीज जानकारी देता भी है तो उसके नाम को सार्वजनिक करने पर सजा हो सकती है।
सदन में सपा सांसद नरेश अग्रवाल ने कहा कि कानून से ज्यादा लोगों की सोच बदलने के लिए जागरूकता फैलाने पर सरकार को ध्यान देना चाहिए। वहीं बसपा सांसद अशोक सिद्घार्थ ने कहा कि युवाओं में ऐसी बीमारी पैर पसार रही है। सरकार को इस तरफ ध्यान देना चाहिए। कांग्रेस के जयराम रमेश ने कहा कि पार्टी इसका समर्थन करती है।