मुझे हर दिन छेड़छाड़ का शिकार होना पड़ता था: तापसी पन्नू

हाल में रिलीज़ हुई फ़िल्म पिंक में मुख्य किरदार निभाने वाली तापसी पन्नू कहती हैं कि ये फ़िल्म समाज की सच्चाई के करीब है इसलिए लोगों को भा रही है.

वो कहती हैं, “देखिए यह फ़िल्म सच्चाई के क़रीब है, इसलिए हिट हो रही है और लोगों के दिलो को छू रही है. मुझे अपने कॉलेज के दिनों में लगभग हर दिन छेड़छाड़ का शिकार होना पड़ता था और तब चाहकर भी कुछ नहीं कर पाती थी.”

तापसी के मुताबिक, “हमारा समाज इसी तरह का है कि आप किसी लड़के को पलट कर जवाब नहीं दे सकते क्योंकि इसमें बदनामी लड़की की ही होगी लेकिन आज हालात अलग हैं और आज किसी तरह की़ प्रताड़ना सहन करना ग़लत होगा. अगर आपके साथ कुछ ग़लत हो रहा हो तो पलट के जवाब दो, क्योंकि चुप रहना ही सबसे बड़ी कमज़ोरी है.”

तापसी ने पुरुषों से भी अनुरोध किया कि एक औरत उनके घर और देश की 50 फ़ीसदी हिम्मत है ऐसे में उनपर हावी ना हों, बल्कि उनका साथ दें ताकि समाज तरक्क़ी कर सके.

फ़िल्म में एक दमदार किरदार निभा रही कीर्ति कुल्हरि भी मानती हैं कि चाहे वो महिला हो या पुरूष हर किसी को प्यार, रिश्ते और सेक्स को ज़ाहिर करने का हक़ है. अगर किसी ने इन जज्बातों को महसूस किया है तो क्या बुराई है? लड़का हो या लड़की, उसकी वर्जिनिटी उसका निजी मामला है लेकिन भारत में हम इस मामले को सामाजिक और नैतिकता के कठघरे में खड़ा कर देते हैं.”

इस फ़िल्म के अचानक चर्चा में आ जाने से इस फ़िल्म की महिला कलाकारों को ज़रा भी हैरानी नहीं है.

कीर्ति कहती हैं, “हम जब सेट पर पहुंचे और अपने डॉयलॉग समझे, हमें वहां दूसरे लोगों के चेहरे और भाव देख कर समझ आ गया था कि यह फ़िल्म कुछ ऐसा कह रही है जो अलग है.”

तापसी आगे कहती हैं, “इस फ़िल्म के कलाक़ार होने के बावजूद इस फ़िल्म को देखने के बाद हम भावुक हुए, रोए, क्योंकि यह सारा भेदभाव, किसी न किसी शक्ल में हमारे साथ होता है.”

फ़िल्म में मेघालय से आई अभिनेत्री एंड्रिया तरांग भी हैं जो बताती हैं, “उत्तर-पूर्व भारत से होने की वजह से वैसे ही मुझे ज़्यादा भेदभाव झेलना पड़ता है और फिर एक लड़की होना भी अपने आप में मुश्किल है ऐसे में इस फ़िल्म से मैं ख़ुद को एक दर्शक के तौर पर जोड़ पाती हूं.”

फ़िल्म में अमिताभ बच्चन के साथ काम करने के अनुभव को लेकर तापसी और कीर्ति तो ज़्यादा डरे हुए नहीं दिखे लेकिन आंद्रिया ने कहा, “मैं एक बार भी उनकी आंखो में आंखे नहीं डाल पाई और मैं इतना घबरा रही थी उनके आगे कि कोर्ट रुम के सीन में मैं उनको देखती ही नहीं थी.”

तीनों ही महिलाएं इस फ़िल्म के बाद अपने आसपास आए लोगों के बर्ताव में भी बदलाव महसूस कर रही हैं और वो कहती हैं कि ऐसी फ़िल्मों की भारत जैसे समाज को बड़ी ज़रूरत है जहां अभी भी लड़की का जींस पहनना गुनाह माना जाता है औऱ बेटी को पराया धन या बोझ समझा जाता है.

 

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