महानगरों में भी चल रहा है ‘दंगल’ को लेकर दंगल

रेखा श्रीवास्तव

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पिंक के बाद अब दंगल। यह भी लड़कियों को केंद्र करके बनाई गई फिल्म पर वास्तविक। गाँव में जन्मी दो बहनों की सच्ची कहानी। एक पिता ने पत्नी, गांव और दुनिया से संघर्ष कर कुश्ती की अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में अपनी बेटियों को केवल शामिल होने का जज्बा नहीं दिया, बल्कि स्वर्ण पदक लाकर देश का झंडा सबसे ऊँचा फहराने में कामयाब बनाया। फिल्म इंडस्ट्री में कई कामयाब फिल्म देने वाले आमिर खान ने इसके पहले क्रिकेट को गांव के गुल्ली डंडा खेलने वालों तक पहुँचाया था और जीत हासिल करने की सीख दी थी। वैसे ही इस बार दंगल के माध्यम से एक गांव की लड़की की दास्तान को महानगरों में मल्टीप्लेक्स में देखने वाले लोगों तक पहुँचा दिया। पूरी फिल्म में एक तारतम्य रहा जो दर्शक को इधर से उधर हिलने भी नहीं दिया गया। कयामत से कयामत तक में रोमांटिक हीरो की छाप बनाने वाले आमिर खान यहाँ एक पिता महावीर सिंह फोगाट के रूप में भी जंच रहे हैं। उनकी पत्नी का किरदार निभा रही सांक्षी तंवर ने भी अपनी सादगी भरे अभिनय से ही माँ के किरदार में जान भर दी। बड़ी बेटी गीता (जूनियर-ज़ायरा वसीम और सीनियर-फातिमा सना शेख) और छोटी बेटी बबीता (जूनियर-सुहानी भटनागर और सीनियर-सान्या मल्होत्रा ) का किरदार भी लोगों को काफी पसंद आया। प्रतियोगिता के  दौरान बबीता का कहना गीता जीत, गीता जीत तो जैसे दर्शकों के अंदर भी ऊर्जा भर देता था। उनका चेहरा परिचित नहीं था, फिर भी उनके अभिनय ने फिल्म में जान भर दी। इस फिल्म का महत्वपूर्ण पात्र है जो इन दो बहनों का कजन होता है और यह फिल्म उसी की जुबानी चलती है। कजन के डायलाग डिलीवरी और अभिनय की ही बदौलत गंभीर फिल्म के बीच बैठे दर्शक भी हंसने लगते हैं।

फिल्म के शुरुआती दौर में एक पिता परेशान होता है कि वह अपने दौर में खेल प्रतियोगिता में नेशनल से आगे नहीं बढ़ पाया और पेट भरने के लिए नौकरी भरी जिंदगी की शुरुआत करनी पड़ी। शादी होने के बाद वह अपने बेटों के लिए सपना देखने लगता है, पर लगातार तीन-तीन बेटियों के जन्म के बाद वह अपने सपने को बक्स में दबा कर रख देता है। पर एक दिन जब उन्हीं बेटियों के द्वारा दो लड़कों को पीट-पीट कर घायल कर देने की घटना उसके अंदर दबी इच्छा फिर से पंख फैलाने के लिए तैयार हो जाता है।  पिता जुट जाता है अपने सपने में। और इसमें पहले बेटियाँ विरोध करती है, पर जब उनकी समझ में आता है कि यह कदम कितना अच्छा है उसके लिए। तो वो भी जुट पड़ती है और कड़ी मेहनत कर नेशनल प्रतियोगिता में परचम लहरा लेती है। पर उसके बाद थोड़ी सी भटकन के बाद वह फिर अपने पिता और बहन की मदद के साथ इंटरनेशनल प्रतियोगिता में जीत का परचम लहरा लेती है। सबसे बड़ी बात है कि जीत हासिल करने के बाद भी लड़कियाँ अपने हरियाणा की भाषा में ही खुशियाँ व्यक्त करती है। यह फिल्म हरियाणा के रेसलर महावीर सिंह की है जिन्होंने लड़कर अपनी बेटियों को इंटरनेशनल में जीत हासिल करवाई थी। निर्देशक नितेश तिवारी ने बहुत ही अच्छी तरह से पूरी फिल्म को संजोया है और दर्शक को बांधे रखने में पूरी तरह कामयाब हुए हैं। एक समय लगान केवल आस्कर में शामिल ही हुई थी, अब तो ऐसा लगता है कि यह आस्कर लेकर ही आयेगी।

(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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