भाषा और शिक्षक, दोनों का सम्मान बचाने की जिम्मेदारी हमारी और आपकी है

हिन्दी और शिक्षकों के सम्मान वाला महीना हर साल की तरह हाजिर है। एक बार फिर शिक्षकों का घेराव करने वाले शिक्षकों का गुणगान करेंगे औऱ अगले दिन उनको प्रताड़ित करना शुरू करेंगे। शिक्षकों के सम्मान का यह हाल है कि राज्य को प्रिंसिपल नहीं मिल रहे और जो पद पर हैं, पद छोड़कर भागने पर आमादा हैं। खैर, शिक्षक हैं भी तो कहाँ, जो हैं तो वे समय पर कक्षाएं नहीं लेते और जो कक्षाएं लेते हैं, वो विद्यार्थियों को सुहाते नहीं हैं। उपस्थिति के लिए रोको तो घेराव, फेल हो गए तो भी पास करने के लिए घेराव करेंगे औऱ फिर आंदोलन। इस आंदोलन का तो मतलब ही समझ के बाहर है।

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तकलीफ इस बात की है कि आंदोलन का उद्देश्य सिमट कर रह गया है। अब विद्यार्थी और शिक्षक एक दूसरे के लिए नहीं लड़ते और लड़ते हैं तो भी उसी मसले पर दोनों के हित मिलते हैं। छात्र संगठनों के मुट्ठी भर नेता पूरे छात्र समाज का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते मगर प्रतिनिधि उनको ही माना जा रहा है जो किसी खास दल का झंडा ढोते हैं और आगे चलकर वे शोधार्थी नहीं बल्कि नेता ही बनते हैं। राजनीति को ऐसे ही छात्र नेताओं से कई धुरंधर मिले हैं जो राजनीति के नाम पर अक्सर तोड़फोड़ और हिंसा में यकीन रखने वाले होते हैं या सदन में जिनको विपक्षियों को धक्के मारकर बल प्रयोग से बाहर निकालना आता है। सही मायनों में न तो आज छात्र ही हैं और न ही आदर्श शिक्षक ही, अगर वह हैं तो उनको उँगलियों पर गिनना पड़ता है या फिर चिराग लेकर तलाशना पड़ता है।

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अब बात हो हिन्दी की तो वह भी शिक्षकों, लेखकों, साहित्यिक संगठनों, पुस्तकालयों की धरोहर बन गयी है। रही बात राजभाषा की, तो सार्वजनिक स्थलों पर हिंदी का बैंड बजाने वाले नामपट्ट दिखते हैं मगर राजभाषा सम्मेलनों के हिन्दी पखवाड़े में करोड़ों रुपए फूँकने के बाद भी विद्वता झाड़ने के लिए ऐसी क्लिष्ट हिन्दी इस्तेमाल होती है कि सरस भाषा तो बस मुँह छुपाए घूमने लगती है। अगस्त आते ही सभी सरकारी कार्यालय साल भर की गहरी नींद से जाग पड़ते हैं और किसी आलसी विद्यार्थी की तरह साल भर का काम एक महीने में कर लेना चाहते हैं। हिन्दी के वरिष्ठ आलोचकों को प्रोत्साहन देते कम ही देखा गया है। अखबार अब हिन्दी की जगह हिंग्लिश को हिन्दी मानकर पाठकों को मिलावटी भाषा का घोल पिला रहें हैं क्योंकि इसी की डिमांड है। अब तो हिन्दी को उसी की बोलियों से लड़वाया जा रहा है। क्या बात है कि आपको अच्छी बातें और उपलब्धियाँ नजर ही नहीं आतीं या आप उसे देखना ही नहीं चाहते क्योंकि हिन्दी के सहारे ही आपकी रोटी चल रही है। समय आ गया है कि आम विद्यार्थी को छात्र नेताओं के हाथ से अपने शिक्षक और जनता को तथाकथित बुद्धिजीवियों के हाथ से अपनी वाली हिन्दी छीन लेनी चाहिए।

hindi-diwas-6ऐसे लोगों का बहिष्कार करें जो आपकी धरोहर पर कब्जा जमाए बैठे हैं और अब जनता समझाए कि जिसे वे अपनी सम्पति समझे बैठे हैं, वह आदर्श शिक्षक (जिसे कोई नहीं पूछता) और भाषा पूरे विद्यार्थी समाज और आम जनता की  है। इन दोनों को मठाधीशों के कब्जे से बाहर आपकी जिम्मेदारी है। बहिष्कार कीजिए ऐसे शिक्षकों का जो आपको गलत राह पर ले जा रहे हैं और अलगाववाद की भाषा सिखा रहे हैं। बहिष्कार कीजिए ऐसी पार्टियों का, जो बंद और विरोध के नाम पर आपसे शिक्षा का हक छीन रही है। बहिष्कार कीजिए ऐसे साहित्यकारों का जो भाषा को संपत्ति समझते हैं और नए लोगों को सामने नहीं आने देते। बहिष्कार कीजिए उन अखबारों और पत्रिकाओं का जो आपकी भाषा से खिलवाड़ कर रहे हैं और दलील दे रहे हैं कि ये वो आपके लिए कर रहे हैं। बहिष्कार कीजिए ऐसे अधिकारियों का जो हिन्दी की रोटी खाते हैं, उसे लूटते हैं और अपने बच्चों को पढ़ने के लिए विदेश भेज रहे हैं। जो क्लिष्टता से जानबूझ कर भाषा को बोझिल बनाकर उसे आपसे दूर कर रहे हैं और सावर्जनिक स्थलों पर वर्तनी औऱ अशुद्ध भाषा का इस्तेमाल कर आपकी हिन्दी का अपमान कर रहे हैं, जो अपना बाजार जिन्दा रखने के लिए हिन्दी की मौत की दुहाई दे रहे हैं। भाषा और शिक्षा, दोनों की सम्पति नहीं, आम जनता की धरोधर है और जरूरत पड़े तो उसे आगे बढ़कर छीन लेना होगा। इस देश को एपीजे कलाम और गोपी पुलेलाचंद की जरूरत है। बहरहाल अगस्त जाते – जाते सिंगुर के किसानों की उम्मीद और मुस्कान लौटा गया। सुप्रीम कोर्ट ने वाममोर्चा सरकार का वर्ष 2006 भूमि अधिग्रहण कानून अवैध करार दिया और जीत के बाद ममता सरकार अब उत्सव के मूड में हैं। वैसे रास्ते इतने आसान नहीं होंगे क्योंकि टाटा ने अभी हार नहीं मानी है और उसे वर्ष 2011 में ममता सरकार के अध्यादेश पर सुनवाई का इंतजार है। हम तो यही चाहेंगे कि राज्य में कृषि के साथ उद्योग को भी जगह मिले क्योंकि दोनों का रिश्ता विकास और रोजगार से है। आप सभी को अपराजिता की ओर से गणेश चतुर्थी, शिक्षक दिवस और हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

 

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