राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, दिल्ली द्वारा आयोजित “भारत रंग महोत्सव” एशियाई महाद्वीप में होने वाला सबसे बड़ा रंग महोत्सव है l ये नाट्य महोत्सव अन्तराष्ट्रीय स्तर का है l ये महोत्सव १ फ़रवरी से २१ फ़रवरी तक चलेगा।
जिसमे 80 नाटक भारत के तथा 14 विदेशी नाटक आमन्त्रित किये गए हैं l इस वर्ष कलकत्ता शहर से हिंदी नाटक के लिए लिटिल थेस्पियन नाट्यसंस्था अपने बहुचर्चित नाटक ‘गैंडा’ के साथ आमंत्रित किया गया है। ‘गैंडा’ का मंचन 6 फ़रवरी को ‘श्रीराम सेंटर’,दिल्ली और 8 फ़रवरी को भारंगम के सेटेलाईट शो के अंतर्गत अगरतला के नज़रुल प्रेक्षाग्रह में किया जायेगा। बंगाल के प्रसिद्ध व बहुचर्चित निर्देशक एस० एम० अज़हर आलम द्वारा निर्देशित नाटक ‘गैंडा’ यूजेन आइनेस्को के ‘राइनोसोरस’ का हिन्दुस्तानी अनुरूपण है जिसका अनुवाद भी अजहर ने ही किया है।
गैंडा नाटक समाज में अमानवीय सर्वाधिकारी प्रवृत्तियों के प्रसार के बारे में नाटककार की चिंता को दर्शाता है। यह नाटक एक आदमी के संघर्ष को दिखता है जो अपनी पहचान व प्रमाणिकता को एक ऐसी दुनिया में कायम रखने की कोशिश करता है जहां दुसरे लोग पाशविक बल और हिंसा की सुन्दरता के आगे घुटने टेक चुके हैं. यह एक शहर में फैली काल्पनिक महामारी- गैंडाई लहर- को दर्शाता है जिसने लोगों को भयभीत कर रखा है और उन्हें गैंडे में बदल रहा है। इसमें लोगों की आतंरिक क्रूरता को दर्शाया है जो उन्हें एक उद्दंड और कल्पनातीत गैंडे में बदल देती है।
नाटक के निर्देशक एस० एम० अज़हर आलम एक सुविख्यात रंगकर्मी है जो पिछले तीन दशकों से रंगमंच से जुड़े हुए हैं। कोलकाता में हिंदी व उर्दू रंगमंच की स्तिथि को उभारने में इनका बहुत बड़ा योगदान है। वे मौलाना आज़ाद कॉलेज में उर्दू के प्रोफेसर हैं और देश की पहली उर्दू पत्रिका, जो पूरी तरह थिएटर से सम्बंधित है, के सम्पादक है जिसे लिटिल थेस्पियन प्रकाशित करती है। अज़हर आलम ने 50 से ज़्यादा नाटकों में अभिनय किया है, 40 नाटकों में निर्देशन दिया है तथा 6 नाटक उर्दू में लिखे व रूपांतरित किए हैं। नाटकों में स्टेज मूवमेंट व डिज़ाइन इनकी ख़ास पहचान है. पश्चिम बंग नाट्य अकादमी की ओर से 2001 में उन्हें ‘नमक की गुड़िया’ के लिए सर्वश्रेष्ठ नाटककार का पुरस्कार मिला और 2007 में ‘सवालिया निशान’ नाटक के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
इस नाटक का संगीत नाटक अकेडमी द्वारा पुरस्कृत मुरारी राय चौधरी जी ने दिया है तथा प्रकाश योजना जॉय सेन ने। इस नाटक के सम्बन्ध में पद्मश्री राम गोपाल बजाज साहब ने टिपण्णी की थी कि पिछले दशक में उपमहाद्वीप में खेले गये सभी नाटकों में से अगर 10 बड़े नाटकों को चुना जाए तो ‘गैंडा’ उनमें से एक ज़रूर होगा. “गैंडा” नाटक की अब तक 40 से अधिक प्रस्तुतियां हों चुकी है।