पानी की बूंद-बूंद बचाता 80 साल का बुज़ुर्ग

रविवार की एक सुबह, मुंबई के मीरा रोड स्थित एक अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स के सबसे ऊपरी तल्ले पर 80 साल के बुज़ुर्ग पहुंचते हैं.

अगले चार घंटों के दौरान, आबिद सुरती कॉम्प्लेक्स में बने सभी 56 फ़्लैट के डोर-बेल बजाते हैं और हर घर वाले से एक ही सवाल पूछते हैं, “क्या आपके घर में कोई नल टपकता है?”

सुरती के साथ नल ठीक करने वाला एक कारीगर और एक स्वयंसेवी सहायक मौजूद होता है. जो घर वाले नल नहीं टपकने की बात करते हैं, उनसे आबिद सुरती माफ़ी मांग लेते हैं.

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लेकिन जो लोग बताते हैं कि उनके घर में नल टपक रहा है, तो वहां नल ठीक करने वाला उसे ठीक करता है. आबिद सुरती बीबीसी से बताते हैं, “मुझे टपकने वाले नलों से हमेशा दिक़्क़त होती है.”

आबिद सुरती 80 किताबों के लेखक हैं, कार्टूनिस्ट हैं और कलाकार भी हैं. सुरती कहते हैं, “जब मैं किसी दोस्त या रिश्तेदार के घर जाता हूं और अगर मुझे नल के टपकने की आवाज़ सुनाई देती है तो मैं उन्हें ठीक कराने के लिए कहता हूं.”

दरअसल सुरती इसके ज़रिए पानी की एक-एक बूंद बचाना चाहते हैं. उनका बचपन मुंबई के फ़ुटपाथों पर बीता है और उन्होंने अपनी मां को सुबह चार बजे पानी की बाल्टी लिए क़तार में खड़े देखा है.

वह कहते हैं, “मैंने पानी की एक-एक बूंद के लिए लोगों को लड़ते देखा है. जब मैं कहीं भी नल को टपकता हुआ देखता हूं तो बचपन की याद कौंधने लगती है.”

2007 में, उन्होंने अख़बार में प्रकाशित एक न्यूज़ रिपोर्ट देखी जिसमें कहा गया था कि अगर किसी टपकते नल से प्रति सेकेंड एक बूंद पानी भी गिरे तो हर महीने एक हज़ार लीटर पानी बर्बाद हो जाएगा.

सुरती कहते हैं, “यह बात मेरे दिमाग़ से नहीं निकल पाई कि कोई इस तरह से 1000 लीटर पानी बहा सकता है.”

इसके चलते ही उन्होंने ड्रॉप डेड फ़ाउंडेशन बनाया है, यह एक आदमी से चलने वाली ग़ैर-सरकारी संस्था है. जिसकी टैग लाइन है, “प्रत्येक बूंद बचाओ या मर जाओ.” उन्होंने एक प्लंबर को काम पर रखा है और उसके साथ लोगों के घरों के नल और उसकी टोंटियों को ठीक करने का काम करते हैं.

लेकिन ये इतना आसान काम भी नहीं था. अपनी पहली मुश्किल के बारे में वे बताते हैं, “आमतौर पर घर के दरवाज़े महिलाएं खोलती थीं और हम दो पुरुष. वे हमें संदेह से देखतीं और दरवाज़ा बंद कर लेतीं. इसके चलते हमने एक महिला स्वयंसेवी को भी साथ में रखा.”

इसके अलावा आबिद सुरती के दोस्त और परिवार वाले भी इस काम से बहुत ख़ुश नहीं हुए. सुरती बताते हैं, “वे लोग मुझसे कहते हैं, ये कुछ ही बूंदों की बात है, कोई पवित्र गंगा नदी को नाले में नहीं बहा रहा है. वे मुझसे केवल लिखने और चित्रकारी करने को कहते हैं. मैं कुछ बूंद पानी के पानी के पीछे क्यों पड़ा हूं? ये भी पूछते हैं.”

घर वालों को पैसों की भी चिंता होती है कि वे किस तरह से प्लंबर और स्वयंसेवी को भुगतान करते हैं? वे कहते हैं, “अगर आप ईमानदारी से कोई अच्छा काम करना चाहें तो पूरी कायनात आपकी मदद करने लग जाती है. आपके लिए ईश्वर पैसे जुटाने लगते हैं.”

आबिद सुरती ने जब अपने फ़ाउंडेशन की स्थापना का फ़ैसला लिया उन्हीं दिनों उन्हें ख़बर मिली कि उन्हें एक लाख रूपये का हिंदी साहित्य पुरस्कार मिला है.

सुरती बताते हैं, “मेरे ख़र्चे बहुत कम हैं. मैं प्लंबर और स्वंयसेवक को हर दिन पांच-पांच सौ रूपये दिया करता था. कुछ पैसे प्रचार सामग्री पर भी ख़र्च हुए. तो वह पैसा कुछ सालों तक चल गया.”

सुरती आगे बताते हैं, “जब मेरी वित्तीय स्थिति चरमराने लगती है तो भगवान मेरी मदद के लिए उपयुक्त आदमी को भेज देते हैं और बिन मांगे ही मुझे सहायता का चेक मिल जाता है.” इतना ही नहीं अब तो, प्लंबर और स्वयंसेवी साथी भी उनसे पैसा लेने से इनकार कर देते हैं.

आबिद सुरती के मुताबिक़ सालों से की जा रही उनकी कोशिशों के चलते वे कम से कम एक करोड़ लीटर पानी को बचाने में कामयाब हुए हैं. इतना ही नहीं, उनके कई फैंस और फॉलोअर भी बन गए हैं.

हाल ही में बॉलीवुड के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन ने उन्हें अपने टेलीविज़न शो में आमंत्रित किया और आबिद सुरती के फ़ाउंडेशन को उन्होंने 11 लाख रुपये की सहायता राशि दी.

मीरा रोड पर एक महिला उन्हें टीवी शो के ज़रिए ही पहचानने में कामयाब रही. महिला उनसे कहा, “मैंने आपको अमिताभ बच्चन के साथ टीवी पर देखा था.” आबिद मज़ाक़िया अंदाज़ में कहते हैं, “देखिए, मैं अमिताभ बच्चन को भी लोकप्रिय बना रहा हूं.”

ज़्यादातर निवासी उनके काम की प्रशंसा करते हैं और कहते हैं कि आप शानदार काम कर रहे हैं और ये काम जारी रखिए. सुरती उन लोगों को जल संरक्षण की अहमियत के बारे में बताते हैं और ये संदेश आम लोगों तक पहुंचता दिखता है.

अपने घर में नल टपकने के चार-पांच दिन बाद सुरती को ठीक करने के लिए बुलाने वाले गौरव पांडेय ने बीबीसी से बताया, “पिछले कुछ सालों में मुंबई में पर्याप्त बारिश नहीं हुई है. पानी की कमी है. हम लोग नल टपकने को नज़रअंदाज़ कर देते हैं, क्योंकि हम जागरूक नहीं हैं. अगली बार ऐसा हुआ तो मैं जल्दी ही उसे ठीक कराऊंगा.”

सुरती कहते हैं, “जब पानी की कमी होती है, तो हम सरकार पर आरोप लगाने लगते हैं. लेकिन यह केवल सरकार का काम नहीं है. जल संरक्षण हमारा भी काम है.”

आबिद सुरती अपने आसपास के दुनिया में बदलाव लाने के लिए दूसरे लोगों को भी प्रेरित कर रहे हैं.

वे कहते हैं, “मैं सप्ताह में छह दिन तक काम करता हूं. लिखता हूं, पढ़ता हूं और पेंटिंग करता हूं. सातवें दिन मैं कुछ घंटे निकालकर जागरूकता फैलाने का काम करता हूं और अपने आस पड़ोस के लोगों प्रेरित भी करता हूं.”

आबिद ये भी कहते हैं, “आपको बड़ी योजनाओं की ज़रूरत नहीं है क्योंकि प्रत्येक बूंद की अहमियत है.”

(साभार – बीबीसी)

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