डिलीवरी ब्वॉय रघुननाथ ने शुरू कि‍या चाय बेचने का स्‍टार्टअप

आपने पिज्‍जा ओर खाने की होम डिलीवरी तो सुनी होगी लेकिन जयपुर में चाय की होम डिलीवरी की चर्चा खूब हो रही है। आप भी जयपुर जाएं और चाय पीने का मन कर जाए तो एक कॉल कर या एप पर ऑर्डर कर आप चाय की चुस्की ले सकते हैं।

कभी कंधे पर सामान लेकर घर-घर बेचनेवाले रघुनाथ की एक मल्टीनेशनल कंपनी में डिलवरी ब्वाय की नौ हजार की नौकरी क्या लगी, रघुनाथ ने उसी कंपनी की तर्ज पर बिना पूंजी का स्टार्टअप शुरू किया और धीरे-धीरे एक लाख रुपए महीने कमाने लगे. आजकल लोगों के बीच रघुनाथ की चाय की खूब धूम है।

बेहद गरीब परिवार में जन्मे 24 साल के रघुनाथ महज नौ हजार रुपये की तनख्वाह पर अमेजन कंपनी में डिलीवरी ब्वाय का काम करते थे। एक दिन दौड़ते-दौड़ते थक कर चाय पी रहे थे, तभी उन्‍हें लगा कि जब किसी भी सामान को पहुंचाने के लिए कंपनी कमिटमेंट ओर निर्धारित समय में डिलीवरी की सुविधा दे रही है तो फिर चाय के मामले में ऐसा क्यों नहीं कर सकते हैं। यह आइडिया काम आया और रघुनाथ राजा ने बाजार के इस छोटे से कमरे में दो फोन एक किचन से तीन लड़कों के साथ बिना पूंजी का स्टार्टअप शुरू किया।

पहले आस-पास साइकिल पर चाय भेजते थे। अब बाइक खरीद ली है। इलाके के करीब सौ-डेढ़ सौ दुकानों और शो रूम से ऑर्डर दिन भर आते रहते हैं और वो चाय की डिलीवरी करते हैं। इसने शहर की दो बाजारों में अपना किचन खोल रखा है। एक दिन में एक सेंटर पर 500 से लेकर 700 तक की चाय के ऑर्डर दुकानों, शोरूम और घरों से आ जाते हैं।

रघुनाथ का कहना है कि लोग सड़क किनारे धूल-मिट्टी में या फिर नाले के किनारे बनी चाय को पीना पसंद नही करते हैं। चाय को खासतौर से मिनरल वॉटर से बनाया जाता है। अगर कोई पेड़ों के किनारे दोस्तों के साथ चाय पीना चाहता है तो वहां भी चाय भेजी जाती है।

दो साल पहले तक एक दिन में दस-दस किमी. तक पैदल सामान बेचने तक की नौकरी करने वाले रघुनाथ का सपना है कि पूरे जयपुर में उसके किचन से चाय की स्पलाई हो। रघुनाथ का कहना है कि लोग आकर हमारा किचन भी देख जाते हैं और उनका फीडबैक भी वह लेते रहते हैं.।इसके लिए टाइमिंग जरूरी है क्योंकि दुकानों पर ग्राहक के लिए भी चाय मंगाते हैं। फिलहाल पांच स्टाफ और चार बाइक का खर्चा है। रघुनाथ को ज्यादा आर्डर व्हाट्स अप पर आते हैं लेकिन जल्दी ही बेवसाइट के जरिए पूरे जयपुर में सेंट्रलाइज ऑर्डर शुरू किए जाएंगें।

 

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