ट्वीटर पर हिन्दी का परचम लहरा रहे हैं ‘विदेशी इयान’

जब भी कोई विदेशी हिन्दी में बात करता है, हम उसे ऐसे देखते हैं जैसे न जाने वह कितना अनोखा काम कर रहा है। अनोखा तो है क्योंकि एक ओर जब हममें से बहुत से लोग आपसी की बातचीत से लेकर सोशल मीडिया पर अँग्रेजी इस्तेमाल करते हैं तो ऐसे में कोई विदेशी शुद्ध हिन्दी में बात करे, तो अजूबा ही लगेगा। यही आश्चर्य है क्योंकि हिन्दी के अच्छे जानकार और शिक्षक भी सोशल मीडिया पर अँग्रेजी लिखते हैं। ऐसी आत्महीनता की स्थिति में चैनलों की वेबसाइट खंगालते हुए जब लल्लन टॉप पर ये आलेख पढ़ा तो लगा कि यह बात सब तक पहुँचनी चाहिए। उक्त वेबसाइट का आभार इस तरह की जानकारी देने के लिए। अपराजिता लल्लन टॉप का आभार व्यक्त करते हुए आलेख आपके लिए कुछ संशोधनों के साथ दे रही है, पढ़िए लिखा भी अच्छा गया है और साक्षात्कार भी कमाल का है। –

भारत में ज्यादातर लोग यही सोचते हैं लेकिन यह धारणा टूटती है जब आप इयान वूलफर्ड के ट्वीट्स देखते हैं ऑस्ट्रेलिया के इस बंदे ने ट्विटर पर अपनी शानदार हिंदी से तहलका मचा रखा है

ian-woolford

अमेरिकी मूल के इयान वूलफर्ड ऑस्ट्रेलिया की ला ट्रोब यूनिवर्सिटी में हिंदी के लेक्चरर हैं। उनका ट्विटर हैंडल है @iawoolford, जिससे वह हिंदी में ट्वीट करते हैं। यहां उनके करीब साढ़े 11 हजार फॉलोअर हैं। हिंदी के मशहूर लेखक फणीश्वरनाथ रेणु पर उनकी किताब आने वाली है। कभी वह अकबर इलाहबादी के जन्मदिन पर उनका शेर ट्वीट करते हैं तो कभी बच्चन की पंक्तियां याद दिलाते हैं। उनके ज्यादातर ट्वीट्स हिंदी साहित्य से ही जुड़े होते हैं लेकिन इंडियन डिशेज और भारत के राजनीतिक मसलों पर भी इक्का-दुक्का कमेंट से भी वह गुरेज नहीं करते. उनका सेंस ऑफ ह्यूमर भी कमाल का है।

 

इयान वूलफर्ड का हिंदी उच्चारण ऐसा है कि ऑडियो सुनेंगे तो लगेगा ही नहीं कि कोई अंग्रेज है। दिलचस्पी बढ़ी तो हमने (लल्लन टॉप) इयान से संपर्क किया और उनसे यह बातचीत ईमेल के जरिये की।  आपको यह भी बता दें कि हमारे ज्यादातर सवालों के जवाब उन्होंने खुद हिंदी में लिखकर भेजे।

7renuwives

हिंदी से जुड़ाव बचपन से रहा। मां हेलेन मायर्स म्यूजिक साइंटिस्ट हैं और प्रवासी भारतीय कम्युनिटीज में संगीत पर रिसर्च करती हैं। बचपन में उनके साथ त्रिनिदाद, फिजी और मॉरीशस गया. भारत भी गया। 12 की उम्र में मां ने मेरा दाखिला त्रिनिदाद के एक स्कूल में कराया। वहां स्कूली दोस्तों के साथ भजन और लोकगीत गाते हुए हिंदी पढ़ना शुरू किया।

कॉर्नेल युनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन के दौरान मैंने हिंदी की औपचारिक पढ़ाई शुरू की। संगीत और एशियन स्टडीज मेरा ‘मेन सब्जेक्ट’ था. संगीत अब भी मेरे लिए बहुत मायने रखता है। असल में, कुछ समय के लिए मैं ऑपरा गायक बनना चाहता था। ऑस्ट्रेलिया आने के कुछ ही समय पहले मैंने इंडियन म्यूजीशियन वनराज भाटिया के साथ काम किया जब वे न्यूयॉर्क आए थे।

हिंदी के लिए मेरे आकर्षण की वजह है संगीत और प्रदर्शन की मेरी चाह। भारत में कविता पढ़ने के लिए नहीं, गाने कि लिए होती है। यह एक परफॉर्मेंस है। मैंने यह कॉर्नेल में अपनी बीए के दौरान प्रोफेसर कॉनी फेयरबैंक्स और प्रोफेसर मेहर फारूकी से सीखा।

हिंदी भाषा और साहित्य में एमए और पीएचडी अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सस से की. यहां मेरा तआरुफ फणीश्वरनाथ रेणु की रचनाओं से हुआ— जैसे कि ‘तीसरी कसम’ और ‘मैला आंचल’. इसके बाद मैंने भारत में बहुत समय बिताया जिसमें जयपुर के अमेरिकन इंस्टिट्यूट ऑफ इंडियन स्टडीज का हिंदी प्रोग्राम शामिल था। वहां मैंने डॉ एएन सिंह, विधु चतुर्वेदी, सईद अयुब, और नीलम बोहरा सिंह से हिंदी सीखी। भारत के हिंदी विशेषज्ञों की अद्भुत टीम के बिना मैं वहां नहीं होता, जहां आज हूं.

पसंदीदा भारतीय फिल्में: लगान, कुछ कुछ होता है, रंग दे बसंती, श्री चार सौ बीस

मैंने अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्सास, कोर्नेल युनिवर्सिटी, और सिराक्यूज़ युनिवर्सिटी में हिंदी पढ़ाई है। दो साल पहले मैं ऑस्ट्रेलिया आया और मेलबोर्न की लाट्रोब युनिवर्सिटी में होंदी प्रोग्राम के निर्देशक और व्याख्यता का पद हासिल किया। ऑस्ट्रेलिया अप इस विचार से जागृत हो रहा है कि दुनिया में रहने के लिए सिर्फ अंग्रेजी भाषा काफ़ी नहीं है।

मैंने उत्तरी-पूर्व बिहार में रेणु के गांव में अपनी पीएचडी का थीसिस लिखा। मैं रेणु के लोकगीत के प्रति गहरे प्यार से बड़ा मोहित था। ‘मैला आंचल’ पढ़ने के बाद जिसमें सौ से ज़्यादा लोकगीत शामिल है, मैं रेणु के गांव जाकर देखना चाहता था। बिहार में इतने अच्छे लोगों ने मेरा स्वागत किया। तब से मैं वहां के कलाकारों के साथ काम करने जाता रहता हूं।

पसंदीदा साहित्यकार, इसका   जवाब रोज़ बदलता रहेगा। मेरे लिए रेणु जी हिंदी लेखकों में से हमेशा प्रथम रहेंगे. उनके बाद जो लेखक मन में आते हैं वे हैं हरिशंकर परसाई। वे इतने महान व्यंगकार थे और उनके बहुत सारे लेख आज भी प्रासंगिक है। सिर्फ भारत में नहीं बल्कि अन्य देशों में भी। मेरे छात्रों को उनकी कहानियां बहुत पसंद है— जैसे कि ‘चूहा और मैं’ और ‘भेड़ और भेड़िया’. मेरे छात्रों को ऑस्ट्रेलिया के राजनीतिक हालात से इसकी तुलना अहम लगती है।महादेवी वर्मा भी मुझे पसंद हैं. उनकी कविता ‘जो तुम आ जाते एक बार’ एक मास्टरपीस है. कितनी करुणा कितने संदेश — मैंने बहुत लोगों को ये पंक्तियां सुनते ही रोते देखा है.

मेरी बात अधूरी रह जाएगी अगर मैं तुलसीदास का नाम ना लूं। कभी कभी मुझे लगता है कि कोई भी रामचरितमानस की इस चौपाई से टक्कर नहीं ले पाया है:

घन घमंड नभ गरजत घोरा
प्रिया हीन डरपत मन मोरा ।।
दामिनि दमक रह नघन माहीं
खल कै प्रीति जथा थिर नाहीं ।।

मेरे पास इस चौपाई का गुंदेचा ब्रदर्स की परफॉर्मेंस की रिकॉर्डिंग है। पर मैं इसे साल में सिर्फ एकाध बार सुनता हूं क्योंकि डर है कि अगर कई बार सुनूंगा तो उनकी आवाज का शानदार असर कम न हो जाए.

बचपन से भारत आता रहा हूं। 2003 में एक साल के लिए जयपुर में था। वाराणसी और उसके इर्द-गिर्द गांवों में काफी समय बिताया है। करीब एक साल के लिए बिहार के अररिया जिले के एक गांव में रहा. अब भी आना-जाना जारी है।

8students-e1448893708819

जब मैं बिहार या यूपी के गांवों में होता हूं तो लोगों को मेरे हिंदी बोलने पर ज्यादा हैरत नहीं होती शायद इसलिए क्योंकि यहां के लोग इतनी अंग्रेजी नहीं बोलते. पर मैंने देखा है कि दिल्ली और दूसरे शहरों के लोग ज्यादा चकित होते हैं।

पसंदीदा भारतीय व्यंजन (cuisine): लिट्टी चोखा

कभी कभी जब मैं लोगों से हिंदी में बात करता हूँ तब उन्हें काफी देर तक महसूस नहीं होता. ऑस्ट्रेलिया की युनिवर्सिटी में सबसे मजेदार भाषा का ऐसा भ्रम हुआ था. मैंने कैंपस में एक भारतीय आदमी को अपने बेटे से बात करते हुए सुना। वे रास्ता भूल गए थे. तो मैंने उनसे हिंदी में पूछा कि वे कहां जाना चाहते हैं। पिता ने अंग्रेजी में जवाब दिया- ‘वी वॉन्ट टू गो टू द लाइब्रेरी’. हिंदी में मैंने उनको रास्ता बताया। जब वे चलने लगे तो मैंने बेटे को हैरान होकर कहते सुना, ‘पापा, उस अंग्रेज को हिंदी कैसे आती है?’ और पापा ने जवाब दिया “क्या मतलब है तुम्हारा, वो तो अंग्रेजी में बोल रहा था.’

डेविड वॉर्नर क्रिकेट के शानदार खिलाड़ी है। कभी कभी मैं मस्ती के लिए यूट्यूब पर उनके स्विच हिट्स देखता हूं। वह भारत के बारे में भी काफी कुछ जानते होंगे क्योंकि वह दिल्ली डेयरडेविल्स और हैदराबाद सनराइजर्स के लिए खेल चुके हैं लेकिन शायद उस दिन एमसीजी पर वह ये भूल गए होंगे। पहली इनिंग के 23वें ओवर में वॉर्नर ने रोहित शर्मा से जाकर कहा, ‘स्पीक इंग्लिश’. मैं नहीं जानता कि वार्नर ने ऐसा क्यों किया। एक क्रिकेट फैन और हिंदी का प्रोफेसर होने के नाते मुझे बुरा लगा। यह शर्मनाक और बुरी बात थी। ऑस्ट्रेलिया के मुकाबले भारत में कहीं ज्यादा क्रिकेट के खिलाड़ी हैं. क्रिकेट की चर्चा कई भाषाओं में होती है, जैसे कि हिंदी, तमिल, गुजराती, पंजाबी, भोजपुरी, मैथिली और अन्य भारतीय भाषाओं में. जब वॉर्नर ने यह बात कही तब ऐसा लगा कि उन्हें एशिया और विश्व में ऑस्ट्रेलिया की जगह का अंदाजा नहीं है.

ian-kumar_220916-085923

पसंदीदा भारतीय एक्टर-एक्ट्रेस: आमिर खान, रेखा

मैंने वॉर्नर के बर्ताव व्यवहार को भारत-ऑस्ट्रेलिया के रिश्ते को लेकर भी देखा है – खास कर जब 2009 में इंडियन स्टूडेंट्स पर नस्ली हमले हुए थे। वॉर्नर की टिप्पणी नॉन-ब्रिटिशर्स के लिए कड़वा माहौल पैदा कर सकती है इसलिए जरूरी है कि ऐसे बर्ताव को बढ़ावा न दिया जाए। मेरे कई इंडियन स्टूडेंट्स भी हैं जिन्होंने हिंदी साहित्य नहीं पढ़ा, क्योंकि वे इंडिया में इंग्लिश मीडियम स्कूलों में पढ़े हैं। मैं यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हूं, तो इनकी शिक्षा मेरा फर्ज है. लेकिन उनकी सुरक्षा हमारी अव्वल जिम्मेदारी है.

कई हिंदीभाषी हिंदी में टाइप करना चाहते हैं, पर उसका तरीका नहीं जानते। मैं अपने एप्पल लैपटॉप पर बिल्ट-इन हिंदी का इस्तेमाल करता हूं। फोन पर चैटिंग करते समय मैं एप्पल के बिल्ट-इन हिंदी कीबोर्ड का इस्तेमाल करता हूं. एंड्रॉयड में कई विकल्प हैं- जैसे गूगल हिंदी इनपुट. मैंने अपनी पत्नी के एंड्रॉयड फोन में हिंदी इंस्टॉल कर रखी है, ताकि मैं एंड्रॉयड पर भी टाइप करना सीख सकूं और स्टूडेंट्स को सिखा सकूं।

हां अंग्रेजी में ही। यह रेणु के गांव में होने वाली पारंपरिक परफॉर्मेंस के बारे में है. रेणु की लिखाई में कई लोक संगीत के उदाहरण है. जब मैं उस गांव में था तब मैंने कुछ ऐसे कलाकारों के साथ काम किया जिन्होंने असल में रेणु के साथ कुछ गीत गाए थे। मेरी सब से एक्साइटिंग डिस्कवरी थी कि रेणु खुद एक कलाकार थे। वे बिदापत नाच के कलाकारों के साथ काम करते थे। धान के खेतों में धान रोपते हुए वे भी बारहमासा गाते थे. रेणु के उपन्यास में लिखे गीतों की परफॉर्मेंस बिहार में देखना मेरे लिए कितना एक्साइटिंग था, मैं बता नहीं सकता. वह तब भी था जब मैंने श्री रामप्रसाद मंडल के समुह को बारहमासा गाने गाते सुना—

फागुन मासा रे गवना छे
कि पहिरू कुसुम ही रंग हो
पंथ चलाइत केसिया संहारू बान्हू
कि अंचर पवन झरे

रामप्रसाद जी ने ‘मैला आँचल’ नहीं पढ़ा था। उनके यह गाना इसलिए पता था क्योंकि वे एक किसान थे। उनको याद है कि रेणु जी बारिश के मौसम में ये गाना गाते थे. रामप्रसाद जी ने ‘मैला आंचल’ को मेरे लिए जिंदा किया।

5-ian

रामप्रसाद अब इस दुनिया में नहीं रहे. 18 महीने पहले वे दिल के दौरे से गुजर गए। वे 65 साल के थे। उनके बारे में सोचते हुए आंखें भर आती हैं। उनकी आवाज की रिकॉर्डिंग सुनकर भावुक हो जाता हूं। जब भी मैं उनके घर जाता था या उनके साथ खेत में बैठता था वे मुझे कुछ ना कुछ नया सुनाते थे। मेरे हर सवाल के लिए उनके पास जवाब में एक गाना था। वे हमेशा कहते थे, ‘फिर आना, अपना माइक लाना और मैं तुम्हें कुछ और बताऊंगा.’ मुझे लगा था कि मेरे पास उनके साथ काम करने के कई साल हैं, पर अफसोस ऐसा नहीं है। उम्मीद करता हूं कि रेणु के साहित्य और बिहार के लोकगीतों के बारे में मेरी किताब रामप्रसाद जी की विरासत का वर्णन कर पाएगी.

ऑस्ट्रेलिया में हिंदी के छात्रों की संख्या बढञ रही है। इस साल हिंदी फर्स्ट ईयर में गैर-भारतीय मूल के 15 स्टू़डेंट्स थे। उन में से कई दूसरे और तीसरे साल में भी हिंदी भी पढ़ेंगे। उन्होंने बहुत अच्छा फैसला लिया है। नक्शे पर नजर डालिए और देखिए कि ऑस्ट्रेलिया के लिए एशिया कितना अहम है। भारत ऑस्ट्रेलिया के लिए मूल सहयोगी बनता जा रहा है और भारत से रिश्ते कायम रखने के लिए सिर्फ अंग्रेजी काफी नहीं है। ऑस्ट्रेलिया के कई इलाकों में ऐसे लोगों की जरूरत है जो हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाओं के जानकार हों।

भारत में पुरूषों के लिए पहनावा कठिन नहीं है। विदेशी भी इसके साथ सहज हैं. कई बार जीन्स और शर्ट ठीक रहती है। बिहार जाता हूं तो अपने साथ लुंगी, कुर्ते, जीन्स, और कभी कभी वेस्टर्न सूट भी ले जाता हूं।  कभी न कभी इन सबकी जरूरत पड़ती है। गांव में रास्ते के हैंड-पंप के पास नहाता हूँ। एक लड़का पानी निकालता है और दूसरा मुझे साबुन देता है। उस दौरान लुंगी बहुत जरूरी है। हैंड-पंप के पानी से भीगते हुए आप जीन्स नहीं पहन सकते.

पसंदीदा हिंदी मुहावरा: ट्विटर पर चोर नाचा किस ने देखा 

एक बार बारिश के मौसम में मैंने धान की रोपनी में मदद की क्योंकि मैं बारहमासा के गाने रिकॉर्ड करना चाहता था, जो सिर्फ उस काम के दौरान गाए जाते हैं। उस काम के लिए भी लुंगी जरूरी है. पर जब मैं गांव छोड़कर पूर्णिया जाता हूं तब मेरा पहनावा अलग होता है — पैंट, शर्ट, और अच्छे जूते.

मैं शायर तो नहीं, मगर भारत ने मुझे शायरी सिखा दी। कभी कभी कुछ लिख लेता हूं. वे काफी छोटी होती हैं, 140 अक्षरों की, ताकि वे एक ट्वीट में समा जाएं। दिल्ली चुनाव के समय जब मैं लाट्रोब युनिवर्सिटी के पास कंगारुओं से भरे जंगल से गुजर रहा था, तब मैंने ये पंक्तियां लिखीं:

जब भी मैं देखता हूं वन में कंगारू
लग रहा है कि हम रहते गंवारू
रात भर पीता हूं बोतल या दारू
कहता−क्या इस बार चलेगा झाड़ू?

यह कहने के लिए बहुत धन्यवाद. कभी कभी मैं सपना देखता हूं कि बॉलीवुड की फिल्म में कोई रोल करूं- जैसे लगान में कप्तान रसेल। उस के लिए मुझे ब्रिटिश-हिंदी एक्सेंट का इस्तेमाल करना पड़ेगा जो मैं मैं कभी-कभार मजाक में कर लेता हूं तो कभी कोई रेणु के ‘मैला आंचल’ पर फिल्म बनाए तो मैं जरूर कहूंगा कि डायरेक्टर साहब कि शुरुआत के मार्टिन साहब का रोल मुझे दें। उस से मेरा सपना सच हो जाएगा.

जहां तक मेरे उच्चारण की बात है, इसका श्रेय मेरे शिक्षकों को जाता है. भारत में रहने का भी फायदा मिला है।

160910162416_ian_woolford_640x360__nocredit

उच्चारण भाषा सीखने का कठिन हिस्सा है. पढ़ाने के दौरान भी पहले दिन से इस पर ध्यान देता हूं। अमेरिकी और ऑस्ट्रेलियन अंग्रेजी बोलने वालों को कुछ अक्षरों का उच्चारण करने में काफी तकलीफ होती है— जैसे ‘त’ को वह ‘थ’ बोलते हैं. कभी कभी हमें ‘अ’ और ‘आ’ का फर्क समझने में दिक्कत पेश आती है. ट-वर्ग (ट, ठ, ड, ढ) के अक्षर भी बहुत मुश्किल होते हैं। पर मैं अपने छात्रों को यह भी याद दिलाता हूं कि अगर वे हिंदी को ऑस्ट्रेलियन एक्सेंट से बोलें तो फिर भी भारत में लोग उन्हें समझ लेंगे और उनकी हिंदी सीखने की प्रेरणा को सराहेंगे.

मैं भारतीय राजनीति पर अपनी टिपण्णियां वहां तक सीमित रखने की कोशिश करता हूं जहां तक भाषा और साहित्य के क्षेत्र शामिल होते हैं। जैसे कि आपने जो राजस्थान का उदाहरण दिया उससे स्कूलों में साहित्य की पढ़ाई शामिल है. जहां तक बिहार के चुनाव का सवाल है, मैंने बड़े चाव से उसका अनुसरण किया। ऐसा लगता है कि मैंने हफ्तों भर के लिए किसी और चीज के बारे में नहीं सोचा। यह इसलिए क्योंकि मेरे कई खास मित्र बिहार में रहते हैं, जिनमें ऐसे दोस्त शामिल हैं जो बिहार की पार्टियों में सक्रिय हैं।

पसंदीदा भारतीय मिठाई: खीर

काफी साहित्य जो मैं पढ़ता हूं और जिस पर मैं शोध करता हूं, वह बिहार से है। बहुत सारा दिल्ली-केंद्रित रिपोर्टिंग का ध्यान राष्ट्रीय राजनीति के असर पर था− जैसे कि ‘यह चुनाव मोदी और बीजेपी के लिए क्या मायने रखते हैं?’ पर मेरा इंटरेस्ट इसलिए था कि पटना से लेकर पूर्णिया तक मेरे बहुत दोस्त हैं। मैं जानता हूं कि यह चुनाव उनके लिए; उनकी भविष्य की आशाओं के लिए कितना महत्वपूर्ण था.

मेरी पढ़ाई का क्षेत्र हिंदी साहित्य है इसलिए मैं भारतीय समाचार पर तब गौर करता हूं जब साहित्य के बारे में कुछ समाचार आते हैं. 30 अगस्त को कन्नड़ साहित्यकार एमएम कलबुर्गी की उनके घर में हत्या कर दी गई। ऐसा लगता है कि उनकी हत्या उनके विचारों के लिए की गई। कोई भी हत्या अस्वीकार्य है; अपमानजनक है. और जब किसी विद्वान की हत्या उसके अकादमिक विचारों के लिए की जाती है तब उनके साथीदार अकादमिक और साहित्यकारों का हक बनता है कि वे अधिक सुरक्षा की मांग करें; कि वे लिखने का हक, और जीने का हक की मांग करें। इसी दिशा में कई लेखकों ने अपने साहित्य अकादमी पुरस्कार वापस किए हैं.

tqh0bks5

कई विरोध करने वाले लेखकों ने कहा है कि भारत में असहिष्णुता बढ़ती जा रही है. इसीलिए दादरी की भयानक हत्या और ऐसी घटनाएं बहस का हिस्सा बन चुकी हैं। मैं नहीं जानता कि बढ़ती इनटॉलेरेंस की बात सही है या नहीं. मुझे लगता है कि ऐसी चीज़ को नापना बहुत मुश्किल है. मगर मैं नहीं मानता कि आज के विरोध अमान्य हैं क्योंकि बीते हुए समय में चीजें और भी बूढ़ी रही होंगी। इसलिए मेरे दिल में उन लेखकों के लिए ‘सॉफ्ट कॉर्नर’ है जिन्होंने पुरस्कार वापस किए हैं।

काश कि इन चर्चाओं में इन लेखकों की रचनाओं के बारे में ज्यादा बातें होतीं. उदाहरण के लिए 90 साल की कृषणा सोबती को ही लीजिए. उनकी ‘ए लड़की’ बीसवीं सदी की सबसे बड़ी साहित्यिक रचनाओं में से एक है। इस लघु उपन्यास के विषय आज के चर्चाओं से सीधे-सीधे जुड़े हैं। उनके उपन्यास का रिश्ता जीने का हक, बूढ़ा होने का हक और अपने माता-पिता को बूढ़े होते देखने के हक के बारे में है। यह उपन्यास उस हक के बारे में है जो जिंदगी की खुशी या ग़म महसूस कर सकें। यह हक डॉ कलबुर्गी और उनकी परिवार से छीन लिए गए. मोहम्मद अखलाक और उनके परिवार से भी। अगर आम जनता को कृष्णा सोबती की रचनाओं को पढ़ने और उन पर बहस करने का मौका मिलता तो शायद ‘अवार्ड वापसी’ की छवि कुछ और ही होती।

भारत में बीस प्रतिशत से कम लोग अच्छी अंग्रेजी बोल पाते हैं. जब मैं पूर्णिया में काम करता हूं तो कई दिनों तक अंग्रेजी का एक वाक्य तक नहीं सुनने को मिलता। पीएम मोदी के हिंदी के इस्तेमाल से कई लोगों को उम्मीद बंधती है कि हिंदी भाषा और सफलता में रिश्ता कायम हो सके और दुनिया में हिंदी भाषा की स्थिति ऊंची हो सके।

मेरी बीवी शैनन और मेरी दो बेटियां. ऐडी 9 और बिक्सी 7 साल की। दोनों यहां पर प्राइमरी स्कूल में हैं. शैनन ला ट्रोब यूनिवर्सिटी में साइंटिस्ट हैं और बायोलॉजी के फील्ड में रिसर्च करती हैं। वह हिंदी नहीं बोलतीं, लेकिन भारत में प्रवास का आनंद ले चुकी हैं. मेरे बच्चे हिंदी सीखने में दिलचस्पी रखते हैं। खास तौर से बिक्सी, जो अगले साल विक्टोरिया स्कूल ऑफ लैंग्वेजेस में हिंदी प्रोग्राम में एडमिशन लेना चाहती है। मैं अपने ऑस्ट्रेलियन छात्रों को बोल-चाल की हिंदी ही सिखाता हूं। अगर उन्हें सिर्फ शुद्ध या औपचारिक हिंदी सिखाऊं तो लोग उनका मजाक उड़ाएंगे कि वे रामानंद सागर के रामायण सीरियल के कलाकारों की तरह बात करते हैं।

ian-tweet_220916-085602

मैं रेणु का इसीलिए कायल हूं कि वे भाषा से खेलते हैं। रेणु के जमाने में हिंदी के कुछ विद्वानों ने कहा था कि रेणु ने उत्तर पूर्वी बिहार की हिंदी को अलग रीत से पेश किया है। आज भी कुछ लोगों को उनके लिखने का अंदाज अजीब लगता है। रेणु समझ चुके थे कि भाषा के बदलाव के रास्ते में कुछ नहीं आ सकता. इस विवाद का कभी अंत नहीं आएगा कि हिंदी को अन्य भाषाओं से शब्द उधार लेने चाहिए या नहीं पर सच्चाई यही है कि भाषा कभी स्थित नहीं हो सकती। वह हमेशा बदलती रहेगी. वही भाषा बदलने से इनकार कर सकती है जो मर चुकी हो।

 

शुभजिता

शुभजिता की कोशिश समस्याओं के साथ ही उत्कृष्ट सकारात्मक व सृजनात्मक खबरों को साभार संग्रहित कर आगे ले जाना है। अब आप भी शुभजिता में लिख सकते हैं, बस नियमों का ध्यान रखें। चयनित खबरें, आलेख व सृजनात्मक सामग्री इस वेबपत्रिका पर प्रकाशित की जाएगी। अगर आप भी कुछ सकारात्मक कर रहे हैं तो कमेन्ट्स बॉक्स में बताएँ या हमें ई मेल करें। इसके साथ ही प्रकाशित आलेखों के आधार पर किसी भी प्रकार की औषधि, नुस्खे उपयोग में लाने से पूर्व अपने चिकित्सक, सौंदर्य विशेषज्ञ या किसी भी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। इसके अतिरिक्त खबरों या ऑफर के आधार पर खरीददारी से पूर्व आप खुद पड़ताल अवश्य करें। इसके साथ ही कमेन्ट्स बॉक्स में टिप्पणी करते समय मर्यादित, संतुलित टिप्पणी ही करें।