वर्ष में दो बार छठ का महोत्सव पूर्ण श्रद्धा और आस्था से मनाया जाता है| पहला छठ पर्व चैत्र माह में तो दूसरा कार्तिक माह में मनाया जाता है| चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी चैती छठ और कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को कार्तिकी छठ कहा जाता है| यह पर्व सूर्यदेव की उपासना के लिए प्रसिद्ध है|
मान्यता है कि छठ देवी सूर्यदेव की बहन है| इसलिए छठ पर्व पर छठ देवी को प्रसन्न करने हेतु सूर्य देव को प्रसन्न किया जाता है| गंगा-यमुना या किसी भी नदी, सरोवर के तट पर सूर्यदेव की आराधना की जाती है| महाभारत में भी छठ पूजा का उल्लेख किया गया है| पांडवों की माँ कुंती को विवाह से पूर्व सूर्य देव की उपासना कर आशीर्वाद स्वरुप पुत्र की प्राप्ति हुई जिनका नाम था कर्ण| पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भी उनके कष्ट दूर करने हेतु छठ पूजा की थी|
हिन्दू धर्म में छठ पर्व का अत्यंत महत्त्व है और पुरुष एवं स्त्री एक सामान रूप से इस पर्व को मनाते हैं| यह पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से आरंभ होकर सप्तमी तक चलता है| प्रथम दिन यानि चतुर्थी तिथि ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है| आगामी दिन पंचमी को खरना व्रत किया जाता है और इस दिन संध्याकाळ में उपासक प्रसाद के रूप में गुड-खीर, रोटी और फल आदि का सेवन करते है और अगले 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखते हैं| मान्यता है कि खरन पूजन से ही छठ देवी प्रसन्न होती है और घर में वास करती है| छठ पूजा की अहम तिथि षष्ठी में नदी या जलाशय के तट पर भारी तादाद में श्रद्धालु एकत्रित होते हैं और उदीयमान सूर्य को अर्ध्य समर्पित कर पर्व का समापन करते हैं|
छठ पर्व – महत्व
छठ पूजा मुख्य रूप से बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है| हालाँकि अब यह पर्व देश के कोने-कोने में मनाया जाता है| पौराणिक कथाओं के अनुसार यह माना जाता है कि यह भारत के सूर्यवंशी राजाओं के मुख्य पर्वों से एक था| कहा जाता है कि एक समय मगध सम्राट जरासंध के एक पूर्वज का कुष्ठ रोग हो गया था| इस रोग से निजात पाने हेतु राज्य के शाकलद्वीपीय मग ब्राह्मणों ने सूर्य देव की उपासना की थी| फलस्वरूप राजा के पूर्वज को कुष्ठ रोग से छुटकारा मिला और तभी से छठ पर सूर्योपासना की प्रातः आरंभ हुई है|
छठ व्रत पूर्ण नियम तथा निष्ठा से किया जाता है| श्रद्धा भाव से किए गए इस व्रत इ नि:संतान को संतान सुख की प्राप्ति होती हैं और धन-धान्य की प्राप्ति होती है| उपासक का जीवन सुख-समृद्धि से परिपूर्ण रहता है|
छठ व्रत – विधि
- छठ पर्व में मंदिरों में पूजा नहीं की जाती है और ना ही घर में साफ़-सफाई की जाती है|
- पर्व से दो दिन पूर्व चतुर्थी पर स्नानादि से निवृत्त होकर भोजन किया जाता है।
- पंचमी को उपवास करके संध्याकाळ में किसी तालाब या नदी में स्नान करके सूर्य भगवान को अर्ध्य दिया जाता है| तत्पश्चात अलोना भोजन किया जाता है।
- षष्ठी के दिन प्रात:काल स्नानादि के बाद संकल्प लिया जाता है| संकल्प लेते समय निम्न मन्त्रों का उच्चारण करे
ऊं अद्य अमुकगोत्रोअमुकनामाहं मम सर्व
पापनक्षयपूर्वकशरीरारोग्यार्थ श्री
सूर्यनारायणदेवप्रसन्नार्थ श्री सूर्यषष्ठीव्रत करिष्ये।
- पूरा दिन निराहार और नीरजा निर्जल रहकर पुनः नदी या तालाब पर जाकर स्नान किया जाता है और सूर्यदेव को अर्ध्य दिया जाता है|
अर्ध्य
अर्ध्य देने की भी एक विधि होती है| एक बांस के सूप में केला एवं अन्य फल, अलोना प्रसाद, ईख आदि रखकर उसे पीले वस्त्र से ढक दें| तत्पश्चात दीप जलाकर सूप में रखें और सूप को दोनों हाथों में लेकर निम्न मन्त्र का उच्चारण करते हुए तीन बार अस्त होते हुए सूर्यदेव को अर्ध्य दें।
ऊं एहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पया मां भवत्या गृहाणार्ध्य नमोअस्तुते॥
छठ पूजा 2016 शुभ मुहूर्त
छठ पर्व तिथि : 6 नवम्बर 2016, रविवार
सूर्योदय, छठ तिथि : प्रातः काल 06:36, 6 नवम्बर 2016
सूर्यास्त, छठ तिथि : सांय काल 05:32, 6 नवम्बर 2016
षष्ठी तिथि प्रारंभ : सुबह 10:47 बजे से, 5 नवम्बर 2016
षष्ठी तिथि समाप्त : दोपहर 12:16 बजे तक, 6 नवम्बर 2016