Sunday, July 20, 2025
खबर एवं विज्ञापन हेतु सम्पर्क करें - [email protected]

‘गूँगी रुलाई का कोरस’ सामूहिकता के स्वप्न का महाआख्यान है —अरुण होता

आसनसोल । आसनसोल के जिला ग्रंथागार में सहयोग संस्थान के तत्वाधान में रणेन्द्र के उपन्यास ‘गूँगी रुलाई का कोरस’ पर “बदलता समाज, संगीत और गूँगी रुलाई का कोरस” विषय पर एक साहित्य संगोष्ठी का आयोजन किया गया था। इसमें मुख्य अतिथि के तौर पर रणेन्द्र, आलोचक रविभूषण,सृंजय, अरुण होता, सुधीर सुमन तथा डॉ. प्रतिमा प्रसाद एवं अन्य विद्वान आमंत्रित थें। बी. बी कॉलेज के विभागाध्यक्ष राजेन्द्र शर्मा के अवकाश ग्रहण पर उनका नागरिक अभिनन्दन भी इस कार्यक्रम में किया गया। उनके लिए उनके सहकर्मी अरुण पाण्डेय एवं कवि निशांत ने उनकी सराहना की। मंच का संचालन कर रहे बी. बी कॉलेज के अध्यापक के. के. श्रीवास्तव साहित्यिक -सांस्कृतिक गतिविधियों को शहर की संवेदनशीलता का मापदंड बताया।  वक्ता के रूप में डॉ. प्रतिमा प्रसाद ने कहा, “ आज के समय के विशिष्ट उपन्यासकार अपनी महत्ती उपस्थिति को, उत्तरदायित्व को बड़ी ईमानदारी, बड़ी निडरता के साथ, बड़ी गतिशीलता के साथ निर्वाह करने में सक्षम है। ‘ग्लोबल गाँव का देवता’ से जो वैचारिकी आई है, वह ‘गायब होता देश’ के बाद ‘गूँगी रुलाई का कोरस’ तक आते -आते एक प्रौढ़ विचारधारा में परिवर्तित हो जाता है।” कहानीकार सृंजय ने मौसीक़ी के अर्थ और शास्त्रीय संगीत पर अपने सूक्ष्म दृष्टिकोण को रखा। उपन्यास के सन्दर्भ में उन्होंने कहा, “यह उपन्यास लगातार सायरन बजा रहा है। हमें इसे सुनना है, समझना है और संगीत तथा संस्कृति को बचाना है।” उनका मानना हैं समाज बदल गया है। बहुत कुछ बदल गया। समय बदल गया है, लोग बदल गए हैं ; पर संगीत का प्रभाव आज भी नहीं बदला। आलोचक अरुण होता ने  लम्बी कहानी को किसी उपन्यास में तब्दील करने की मानसिकता पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, ‘किसी को खुश करने के लिए नहीं। जहाँ लेखक दर-ब-दर दिन-रात अपने से जूझता है, संज्ञान करता है और लड़ाई करता है। सवालों से टकराता है और उन चीजों को जब अपने उपन्यासों में लेकर आता है, रचनाओं में लेकर आता आता है वह सचमुच हमारे लिए विश्वसनीय हो जाता है, महत्वपूर्ण हो जाता है, प्रासंगिक हो जाता है। और सही मायने में उस रचना को हम रचना कहते हैं।” कार्यक्रम में, श्रोताओं के मन उठे जरुरी प्रश्नों को भी मंच के सामने रखा गया, जिसका उत्तर स्वयं रणेन्द्र ने दिया। अध्यक्षीय वक्तव्य में आलोचक रविभूषण ने ‘गूंगी रुलाई के कोरस’ के बहाने आज के समय में प्रेम,मुक्ति के स्वप्न और मनुष्यता के बचाने की हर संभव कोशिश के लिए रणेन्द्र को साधुवाद दिया कार्यक्रम में शहर के साहित्य प्रेमी,बुद्धिजीवी,छात्र,शिक्षक-प्राध्यापक और संस्कृतिकर्मी काफी संख्या में उपस्थित थे। कार्यक्रम का अंत शिव कुमार यादव के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ।

शुभजिता

शुभजिता की कोशिश समस्याओं के साथ ही उत्कृष्ट सकारात्मक व सृजनात्मक खबरों को साभार संग्रहित कर आगे ले जाना है। अब आप भी शुभजिता में लिख सकते हैं, बस नियमों का ध्यान रखें। चयनित खबरें, आलेख व सृजनात्मक सामग्री इस वेबपत्रिका पर प्रकाशित की जाएगी। अगर आप भी कुछ सकारात्मक कर रहे हैं तो कमेन्ट्स बॉक्स में बताएँ या हमें ई मेल करें। इसके साथ ही प्रकाशित आलेखों के आधार पर किसी भी प्रकार की औषधि, नुस्खे उपयोग में लाने से पूर्व अपने चिकित्सक, सौंदर्य विशेषज्ञ या किसी भी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। इसके अतिरिक्त खबरों या ऑफर के आधार पर खरीददारी से पूर्व आप खुद पड़ताल अवश्य करें। इसके साथ ही कमेन्ट्स बॉक्स में टिप्पणी करते समय मर्यादित, संतुलित टिप्पणी ही करें।

शुभजिताhttps://www.shubhjita.com/
शुभजिता की कोशिश समस्याओं के साथ ही उत्कृष्ट सकारात्मक व सृजनात्मक खबरों को साभार संग्रहित कर आगे ले जाना है। अब आप भी शुभजिता में लिख सकते हैं, बस नियमों का ध्यान रखें। चयनित खबरें, आलेख व सृजनात्मक सामग्री इस वेबपत्रिका पर प्रकाशित की जाएगी। अगर आप भी कुछ सकारात्मक कर रहे हैं तो कमेन्ट्स बॉक्स में बताएँ या हमें ई मेल करें। इसके साथ ही प्रकाशित आलेखों के आधार पर किसी भी प्रकार की औषधि, नुस्खे उपयोग में लाने से पूर्व अपने चिकित्सक, सौंदर्य विशेषज्ञ या किसी भी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। इसके अतिरिक्त खबरों या ऑफर के आधार पर खरीददारी से पूर्व आप खुद पड़ताल अवश्य करें। इसके साथ ही कमेन्ट्स बॉक्स में टिप्पणी करते समय मर्यादित, संतुलित टिप्पणी ही करें।
Latest news
Related news