ऐ सखी सुन 13
सभी सखियों को नमस्कार। सखियों, इतिहास के पन्नों पर अनगिनत प्रेम कहानियाँ अंकित हैं जिनकी सुगंध से देश की हवाएँ आज भी सुवासित हैं। इनमें से कुछ कहानियों को अपनी मंजिल मिलीं तो कुछ आधी -अधूरी भले ही रहीं लेकिन उन्हें शोहरत खूब मिली। ऐसी ही एक कथा है, रानी रूपवती या रूपमती और मालवा के अंतिम स्वाधीन सम्राट बाजबहादुर की प्रेमकथा और इसकी गवाही देता है मांडू का किला।
कहा जाता है कि रानी रूपमती नर्मदा में स्नान किए बिना अन्न जल ग्रहण नहीं करती थीं और राजा बाजबहादुर उनसे इतना प्रेम करते थे कि उन्होंने मांडू में 3500 फीट की ऊंचाई पर रानी रूपमती के लिए एक किले का निर्माण करवाया जिसे रानी रूपमती का किला भी कहा जाता है। इस किले से नर्मदा नदी दिखाई देती थी। रानी रूपमती के महल तक पहुँचने से पहले राजा बाज बहादुर के महल को पार करना होता था और बाज बहादुर ने यह व्यवस्था रानी की सुरक्षा के लिए की थी।
रूपमती की पृष्ठभूमि को लेकर बहुत सी कहानियाँ मशहूर हैं, जिनमें से एक के अनुसार वह गरीब किसान की बेटी तो अन्य के अनुसार गणिका की पुत्री थी। रूपमती केवल अनिंद्य सुंदरी ही नहीं थीं बल्कि गीत संगीत की कला में भी निष्णात थीं। संगीत पारखी बाजबहादुर ने उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्हें अपनी जीवन संगिनि बना लिया। लेकिन इस प्रेमकथा की उम्र ज्यादी लंबी नहीं रही क्योंकि रूपमती और बाजबहादुर के प्रेम को शत्रुओं की नजर लग गई। कहते हैं कि रूपमती के रूप की चमक और गीतों की खनक दिल्ली दरबार तक भी पहुँच गई और अकबर के सेनानायक अहमद खाँ के नेतृत्व में मुगल सेना मालवा पर चढ़ आईं।
जब सेना सारंगपुर तक पहुँची तब बाजबहादुर को इसकी सूचना मिली। एक कहानी के अनुसार सन् 1561 ई. में सारंगपुर के युद्ध में पराजित होकर बाजबहादुर भाग निकला तो दूसरी के अनुसार अहमद खाँ द्वारा कैद कर लिया गया। कहा जाता है कि बाजबहादुर की गिरफ्तारी की सूचना पाकर रूपमती ने हीरा चाटकर अपने प्राण दे दिए। एक कहानी यह है कि अहमद खां ने गमजदा रानी को बंदी बनाकर उन्हें अपनी बेगम बनने का प्रस्ताव दिया लेकिन उन्होंने यह दोहा लिखकर, सतीत्व रक्षा के लिए आत्महत्या कर ली-
“रूपवती दुखिया भई, बिना बहादुर बाज।
सो अब जियरा जरत है, यहाँ नहीं कछु काज ।।
यह खबर पाकर अकबर को बहुत पछतावा हुआ और उन्होंने बाजबहादुर को मुक्त कर दिया। कहते हैं कि रूपमती की मजार पर सिर पटक कर बाजबहादुर ने भी प्राण त्याग दाए। कहा जाता है कि 1568 में सारंगपुर के पास एक अकबर द्वारा एक मकबरे का निर्माण कराया गया। बाज बहादुर के मकबरे पर अकबर ने ‘आशिक-ए-सादिक’ और रूपमती की समाधि पर ‘शहीदे-ए-वफा’ लिखवाया।
रूपमती की गायन प्रतिभा की चर्चा उस दौर में हर ओर थी और बहुत से लेखकों ने अपनी किताबों में इसका जिक्र किया है। मुंशी कर्म अली ने “तवारीखे मालवा” में लिखा है कि दीपक राग गाने के बाद जब तानसेन उसकी ज्वाला से पीड़ित था तो रूपमती ने मल्हार राग गाकर उसे शांत किया था। रूपमती केवल गायिका नहीं कवयित्री भी थीं।
हालांकि उनके द्वारा रचित कवाताएँ समय के साथ इतिहास के गलियारे में विलुप्त हो गई हैं लेकिन जनता के बीच उनकी स्मृति अब भी जीवित हैं। रूपमती द्वारा रचित अनेक गीत और पद्य जनसाधारण के बीच मशहूर हैं तथा अब तक मालवा के कई भागों में लोकगीतों के रूप में गाए जाते हैं। सैरुलमुताखिरीन ने भी रूपवती की बेजोड़ गायकी और हिंदी जबान में लिखे मजमून की सराहना की है। उनके गीत प्रेम और समर्पण के भावों से लबरेज़ हैं जिनमें भारतीय नारी की आत्मा कूजती है। सखियों, एक उदाहरण देखिए –
“और धन जोड़त है री मेरे तो धन प्यारे को प्रीत पूँजी।
कहूँ तिरिया की न लगे दृष्टि अपने कर रखूँगी कूँजी।
दिन – दिन बढ़े सवायो डेवढ़ो घटे न एको गूँजी।
बाज बहादुर के सनेह ऊपर निछावर करूँगी धन और जी।”
सखियों, यह प्रेम कहानी अपने आप में असाधारण और अविस्मरणीय है और कहने वाले कहते हैं कि मांडू के किले पर अब भी बाज बहादुर और रूपवती की मधुर स्वर लहरियाँ गूंजती हैं। प्रेम और समर्पण के साथ शस्त्र और संगीत के साये में पली इस कहानी ने जाति और धर्म की बेड़ियों का अतिक्रमण कर इतिहास ही नहीं जनता के बीच भी अपनी मिसाल कायम की। इस कथा पर कई उपन्यासों की रचना हुई है और फिल्म भी बनी है। हीर- रांझा , लैला- मजनू , शीरीं- फरहाद की तरह रूपवती और.बाजबहादुर की कथा को तो जनमानस ने याद रखा लेकिन रूपवती की काव्य प्रतिभा का मूल्यांकन सही ढंग से नहीं हो पाया। ऐसी न जाने कितनी प्रतिभाओं को समय की धूल ने ढँक लिया है, जिसे पोंछना आवश्यक है। आज के लिए विदा , सखियों। अगले हफ्ते फिर मुलाकात होगी, एक नई कहानी के साथ।
सखी, इतिहास के पन्नों से अद्भुत और मर्मस्पर्शी प्रेम कहानी खोज हम पाठकों के सामने रखने के लिए आभार। रानी रूपमती अपूर्व सुंदरी थी, यह बात तो जान फिर भी जानते हैं, लेकिन वह संगीत में पारंगत थी और कवयित्री भी थी, यह बहुत कम लोगों को पता है। बाद बहादुर के प्रेम पर न्योछावर रानी रूपमती जैसी इस नायिका को याद करना अपनी परंपरा के बहुलतावादी मूल्यों से रूबरू होना हैं।