किसानों की आत्महत्या गंभीर मामला, 4 हफ्ते में बताएं कार्ययोजना : सुप्रीम कोर्ट

किसानों की आत्महत्या को ‘बेहद गंभीर मामला’ बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इसे रोकने के लिये कार्ययोजना बनाने को कहा है। शीर्ष अदालत ने सरकार को इसके लिये चार हफ्ते का वक्त दिया है।

चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने सरकार की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पीएस नरसिंहा से कहा कि सरकार को ऐसी नीति लेकर आना चाहिए जिसमें किसानों की आत्महत्या के मूल कारण को दुरुस्त किया जा सके।

पीठ ने कहा, ‘यह बेहद गंभीर मामला है। केंद्र सरकार को रोडमैप तैयार करना होगा। केंद्र यह बताए कि किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए राज्यों को क्या कदम उठाने चाहिए।’

पीठ ने केंद्र सरकार को आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, कर्नाटक सहित अन्य राज्यों के साथ विचार-विमर्श कर कार्ययोजना तैयार करनी चाहिए क्योंकि कृषि राज्यों का विषय है। सोमवार को सुनवाई के दौरान जस्टिस नरसिंहा ने कहा कि सरकार इसके लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। वह सीधे किसानों से फसल लेना, बीमा राशि बढ़ाने, ऋण देने और फसल की क्षति होने पर मुआवजे की रकम बढ़ाने सहित कई सकारात्मक कदम उठा रही है। उन्होंने बताया कि सरकार इसे लेकर विस्तृत योजना लाने जा रही है।

वहीं याचिकाकर्ता संगठन सिटीजंस रिर्सोस एंड एक्शन एंड इनिसिएटीव की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंसाल्विस ने कहा कि तीन हजार किसान आत्महत्या कर चुके हैं। सरकार को सभी पहलुओं पर विचार कर कारगर नीति लाना चाहिए।

मालूम हो कि गत तीन मार्च को सुनवाई के लिए किसान  द्वारा की जाने वाली खुदकुशी के मामले में केंद्र सरकार की योजनाओं पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि खुदकुशी के मामले में मुआवजे की व्यवस्था करने की बजाए सरकार के लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि कोई भी किसान खुदकुशी जैसा बड़ा कदम उठाने पर मजबूर न हो। अदालत ने कहा था कि हमारा मानना है कि पीड़ित परिवार को मुआवजा देना समाधान नहीं है बल्कि खुदकुशी को रोकने का प्रयास किया जाना चाहिए।

किसानों द्वारा आत्महत्या के मामले

2015 में 8,007 किसानों ने की आत्महत्या
– जान देने वाले किसानों में से 73 फीसदी दो एकड़ या इससे कम जमीन के मालिक थे।
– आत्महत्याओं के पीछे कर्ज और दिवालियापन को मुख्य वजह बताया गया।
– किसानों द्वारा आत्महत्या करने की सबसे ज्यादा घटनाएं महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु में हुईं।
– वर्ष 2014 में 5,650 किसानों ने आत्महत्या की थी।
(आंकड़े : राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो)

कारण : भारतीय किसान बहुत हद तक मानसून पर निर्भर हैं। इसकी असफलता के कारण नकदी फसलें नष्ट होना आत्महत्याओं का मुख्य कारण माना जाता रहा है। मानसून की विफलता, सूखा, कीमतों में वृद्धि, कर्ज का बोझ आदि समस्याओं की शुरुआत करती हैं। बैंकों, महाजनों, बिचौलियों आदि के चक्र में फंसकर भारत के विभिन्न हिस्सों के किसानों ने आत्महत्याएं की हैं।
वर्तमान में दिल्ली के जंतर-मंतर पर तमिलनाडु के कई जिलों से आए 100 से अधिक किसानों ने नर मुंड के साथ धरना-प्रदर्शन किया।
इनकी मांग है कि सरकार उनका कर्जा माफ करे और राज्य को एक विशेष राहत पैकेज देने की घोषणा करें।
तमिलनाडु में पिछले कुछ महीनों में लगभग 400 किसानों ने आत्महत्या की है।
बताया जा रहा है कि तमिलनाडु में पिछले 140 सालों में सबसे भयावह सूखा पड़ा है।

(साभार – अमर उजाला)

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