धीरज पांडेय
दोनों एक दूसरे के आग़ोश में थे, ओम् की साँसे जैसे ठहर गयी थीं सिया के होंठों पर । खो दिया था ख़ुद को एक दूसरे में । जैसे उनके होंठों पर रुकी हुई प्यास, सदियों से बंजर में रही हो। थोड़ी देर बाद अलग हुए । साँसें नॉर्मल हो रही थीं और बेक़ाबू पर क़ाबू । शर्म से सिया की आँखें झुक गयी थीं । ओम् सिया को घर छोड़ कर अपने घर चला गया । ऑफ़िस में दिन भर बात करने के बहाने ढूंढ़ता रहता। एक दिन इसी चक्कर में बॉस ने ओम् की टेबल ही अलग करवा दी। पर इश्क़ तो अपना रास्ता बना चुका था। दोनों बेपरवाह जी रहे थे एक साथ। जल्दी आकर ऑफ़िस के नीचे मिलना और रात को सिया के घर उसे ड्रॉप करना, ओम् की ज़िंदगी का हिस्सा हो गया था । सिया के साथ बिताए हर एक लम्हे को वो एक लाख के बराबर जीता था । उसे लाइफ से और कुछ नहीं चाहिए था । सिया ही उसके सब कुछ थी।
कुछ समय के बाद ओम् को सिया से एक अलग तरह का इग्नॉरेंस फील हुआ। सिया फ़ोन पर अक्सर किसी से बात करती रहती और पूछने पर भड़क जाती । सिया को खोने के डर से कभी खुल के नहीं पूछता था । एक दिन दोनों मूवी देखने गए। मूवी स्टार्ट होने में थोड़ा समय बचा हुआ था कि सिया अपना फ़ोन ओम् को देकर वॉशरूम चली गयी । सिया का फ़ोन बजा एक मेसैज के साथ।
– एंड व्हाट अबाउट हनीमून ?????
ओम् फट गया ग़ुस्से से । सिया के बाहर निकलते ही बरस पड़ा….
– हाँ मैं कर रही हूँ शादी, क्यूँकि मैं करना चाहती हूँ । वो तुमसे पाँच गुना ज़्यादा कमाता है
और हमारा रिश्ता?
सी….. तुम कुछ ज़्यादा ही सीरियस हो गए हो
और तड़ाक से एक तमाचे के साथ सब कुछ साइलेंट हो गया।
रूम में आते ही किसी हारे हुए खिलाड़ी की तरह गिर गया । एक झटके में उसके शरीर से आत्मा निकल गयी ।
समय ने करवट बदली धीरे – धीरे अपने आप को सम्हाल लिया ओम् ने । अब बॉस को उसका काम अच्छा लगने लगा था पर ओम् को अब ग़ालिब अच्छा लगा था। कुछ न कुछ खरोंचता रोज़ रात को।
एक दिन बॉस ने कहा – ओम् तुम्हारा प्रमोशन हो गया है
ओम् – सर आज मैं ये नौकरी छोड़ रहा हूँ ।………और पाँच साल बाद –
सिया एक कवि सम्मेलन को होस्ट कर रही थी कि तभी ऑर्गनाइजर ने पीछे से आकर कहा “आतिश ” साहब आ गए हैं पहले उन्हें इन्वाइट करो । ऑडियेंस उनका इंतज़ार कर रही है । सिया मजबूरन आतिश साहब का नाम लेकर नीचे बैठ गयी – तालियों की गड़गड़ाहट के बाद
अर्ज़ किया है –
“तेरे इश्क़ के चढ़ाव का उतार आ गया
इतना रोए कि हुनर पे निखार आ गया”
(सिया – ये ओम्……………)
उठ गयी ग़ुस्से में जाने के लिए कि अगला शेर –
“जो मेरी मुफ़लिसी पर कभी मुझे छोड़ गया था
आज मेरी शोहरत देख कर उसे बुखार आ गया…..”
अब दोनों की नज़रें मिल चुकी थीं और ऑडिएंस – जनाब एक बार फिर पढ़ दीजिए…..
(लेखक युवा कहानीकार और कवि हैं। पत्रकारिता भी कर चुके हैं। फिलहाल मुम्बई में हैं और एक प्रोडक्शन हाउस के लिए काम कर रहे हैं)