इस दुनिया को कुदरत ने बनाया है, हवा, पानी, मिट्टी, आग, और आसमान से बनी इस जमीन ने हमारी परवरिश की है मगर ये कुदरत ही हमसे परेशान है। हम अपना जहर हर जगह फैला रहे हैं, पेड़ों को काटा, नदियों को सुखा दिया और अपनी तरक्की का जहर हवा में घोल रहे हैं। इन्सानों से अधिक तो सड़कों पर गाड़ियाँ दौड़ रही हें और अगले कुछ दिनों में हम पर्यावरण दिवस मनाने जा रहे हैं। नीयत ऐसी कि इन्सान तो इन्सान, अब हम पक्षियों और जानवरों को भी नहीं बख्शते। यह तहजीब और सलीकेदारों की दुनिया है और हक माँगने के लिए हम क्रूर होते जा रहे हैं।
गीता, रामायण, कुरान और बाइबल एक दूसरे से नहीं लड़ते और न ही गाय, बकरे और भैंसे लड़ते हैं मगर गाय अब हिन्दू और सुअर मुसलमान हो गया है। क्या हिन्दुओं को विष्णु के वराह अवतार की याद दिलानी होगी। नदी जब बहती है तो मजहब नहीं देखती, आसमान की बारिश पर हर किसी का हक है, मिट्टी में एक दिन हम सबको मिलना है, माटी का ही तो शरीर है, कोई राख होकर मिले तो कोई दफन होकर मिले। अगर कब्र है तो समाधि भी है, तो फिर फर्क कहाँ है।
सच कहें तो हवा में फैलते गाड़ियों के जहर से खतरा है, मोबाइल से निकलता ई कचरा एक खतरा है, नदियों में बढ़ती गन्दगी और रसायनों से खतरा है, तरक्की के नाम पर कटते पेड़ों के कारण कुदरत के संतुलन के बिगड़ने में खतरा है मगर इन्सान के दिमाग में जो प्रदूषण है, उसके सामने ये खतरे कुछ भी नहीं हैं। दिमाग में जो केमिकल है, वह आपको जहरीला बना रहा है, तभी तो आप औरतों को एक जिस्म से ज्यादा कुछ नहीं समझते, औरत की उम्र मायने नहीं रखती, बस वह एक औरत है, आपकी जहरीली सोच और जहरीली जुबान में जो खतरा है, उसके सामने गाड़ियों का काला धुआँ भी फीका है। आप उन सारी चीजों को बाँट रहे हैं, जो आपकी हैं ही नहीं। गाय, बकरी, मोर….ये सब आपकी सियासत बन गयी है। गाय ही क्यों, हर जानवर की सुरक्षा की जानी चाहिए, गँगा ही क्यों, हर नदी का संरक्षण की जरूरत है, जब ईश्वर ने सारी दुनिया को एक बनाया है तो आप अपनी जहरीली सोच से उसे बर्बाद क्यों कर रहे हैं और किसने आपको यह अधिकार दिया है? आप अपनी सोच और जुबान को साफ कीजिए, दुनिया और ये मुल्क यूँ ही खूबसूरत बन जाएँगे। अपनी सियासत के लिए कुदरत को जहरीला मत बनाइए, दुनिया भी सुरक्षित रहेगी और पर्यावरण भी।