भारतीय समाज में शादियों में फिजूलखर्ची और दिखावा करना काफी आम बात है। दहेज जैसी परंपराएं तो बेहद आम हैं। जब भी आस-पास कहीं शादी-विवाह का जिक्र होता है तो हमारे दिमाग में भारी सजावट, गहने और रिश्तेदारों के लिए महंगे गिफ्ट याद आते हैं। लेकिन आज के युवा पुरानी सोच को किनारे रख नए तरीके से सादगी से न केवल शादी कर रहे हैं बल्कि समाज को एक नया संदेश भी दे रहे हैं। ऐसे लोगों की संख्या भले ही कम हो, लेकिन इनकी सोच किसी भी मामले में कम नहीं है।
1- दहेज के खिलाफ
महाराष्ट्र के कोल्हापुर के मनोज पाटिल और सरिता लयकर ने बिना दहेज और किसी दिखावे के शादी करने के बजाय सादगी से शादी करके उन तमाम पढ़े-लिखे लोगों को संदेश दिया है जिनके मन में दहेज की हसरतें पल रही होती हैं। मनोज और सरिता दोनों महाराष्ट्र पुलिस विभाग में सब इंस्पेक्टर हैं। हालांकि दोनों की पोस्टिंग अलग-अलग जगह पर है। दोनों ने इसी साल 28 अप्रैल को कोल्हापुर जिले में एक तीर्थस्थल पर नारसोबाची वादी में जाकर एकदम सादे समारोह में जाकर शादी कर ली। खास बात यह है कि इन्होंने अपनी शादी के लिए जो पैसे बचाए थे उसे चैरिटी में दान कर दिया।
एक सामान्य परिवार की तरह मनोज और सरिता के परिवार वाले भी बाकी लोगों की तरह परंपरागत तरीके से शादी करना चाहते थे। लेकिन सरिता और मनोज दोनों की सोच फिजूलखर्ची को रोकने की थी। हालांकि आमतौर पर मराठा समुदाय में बिना भारी भरकम दहेज और बिना शाही अंदाज के शादी संपन्न ही नहीं होती। मनोज ने बताया, ‘मेरी तीन बड़ी बहनें हैं और मैंने अपने माता – पिता को उनकी शादी के लिए पैसे इकट्ठे करते हुए देखा है। इसलिए मैंने सोचा कि मैं अपनी शादी में एक पैसे का दहेज नहीं लूंगा और सादगी से शादी निपटाऊंगा।’
2-सबको शिक्षा
केरल के कला विशेषज्ञ सूर्या कृष्णमूर्ति ने अपनी अफसर बिटिया की शादी बड़े ही सादे समारोह में संपन्न की। बेटी सीता और उनके पार्टनर चंदा कुमार दोनों ही सिविल सर्वेंट हैं और उन दोनों ने साथ में ही सिविल सर्विस अकादमी में ट्रेनिंग भी की थी। सूर्या ने तिरुवनंतपुरम स्थित अपने घर के पूजा स्थल पर ही दोनों की शादी संपन्न कराई। उन्होंने कहा, ‘यह मेरी काफी पुरानी ख्वाहिश थी कि अपने बच्चों की शादी एकदम सादगी से संपन्न करवानी है। बेटी की शादी में न तो कोई ऑडिटोरियम बुक किया गया और न ही कोई साज-सज्जा हुई। मेरी पत्नी ने भी मेरी सोच का समर्थन किया इसलिए मुझे और आत्मविश्वास आ गया।’ सूर्या ने बेटी सीता की शादी के लिए सेव किए 15 लाख रुपये सरकारी स्कूल, कला संस्थान जैसे कई भले कामों के लिए दान कर दिए। वे केरल के 20 बच्चों की पढ़ाई का खर्च भी उठा रहे हैं।
3- कोर्ट मैरिज
आईआरएस ऑफिसर अभय देवरे और आईडीबीआई बैंक में असिस्टेंट मैनेजर प्रीति कुंभरे ने फैसला किया कि वे सादगी से कोर्ट मैरिज करेंगे और जो पैसे शादी के लिए बचा रखा है उसे उन 10 किसानों के परिवारों को दान कर देंगे जिन्होंने तंगी के चलते मौत को गले लगा लिया। अभय कहते हैं कि जिस गरीब देश का सालाना बजट लगभग 16 लाख करोड़ हो, वहां शादी की फुजूलखर्ची में हर साल 1 लाख करोड़ रुपये फूंक दिए जाते हैं। यह स्थिति काफी घातक है।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मिलने के बाद अभय प्रभावित हुए थे और उन्होंने समाज में बदलाव लाने के बारे में ठान लिया था। अभय और प्रीति ने अमरावती में एक लाइब्रेरी को भी 52,000 रुपये दान कर दिए ताकि गरीब बच्चों को मुफ्त में किताबें मिल सकें।
4- सगन (शगुन) समाज के लिए
सौम्या गर्ग और साहिल अग्रवाल ने फैसला किया कि शादी में मिलने वाला उपहार या सगन जिसे शगुन भी कहा जाता है, जरूरतमंदों को दान कर देंगे। उन्होंने दिल्ली में ही सगन इनिशिएटिव नाम से एक नई शुरुआत की है। शादी का फैसला लेने के बाद उन्होंने सादगी से शादी संपन्न कराने के बारे में सोचा। उन्होंने यह भी ध्यान में रखा कि शादी में मिलने वाले शगुन को वे गरीबों में बांट देंगे। उनके दोस्तों और करीबियों ने भी उन्हें कई तरह के सुझाव दिए। साहिल और सौम्या ने बताया कि उन्हें ऑनलाइन माध्यम से भी तकरीबन 48 आइडिया मिले। उन्होंने हर एक आइडिया के लिए 50,000 रुपये दान किए। सगन इनिशिएटिव ने नवगुरुकुल नाम के एक एनजीओ को दान दिया जो कि गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए काम करता है। उन्होंने किसानों के लिए काम करने वाली संस्था को भी पैसे दिए। साहिल ने बताया कि शादी में उन्हें लगभग 10 लाख रुपये का शगुन मिला था इस पूरी राशि को उन्होंने जरूरतमंदों में वितरित कर दिया
5- किसानों के हित में
महाराष्ट्र में लगातार जारी किसान आत्महत्या से दुखी होकर केमिकल इंजिनियर विवेक वाडके ने सादगी से शादी करने का फैसला लिया। उन्होंने कहा, ‘हमें अपने राज्यों के किसानों के हालात के बारे में पता था। इसलिए हमने गैरजरूरी खर्चों पर लगाम लगायी और कोई फिजूलखर्ची नहीं की। हमारे परिवार ने शादी के लिए 6 लाख रुपये बचा कर रखे थे, जिसे हमने दो गांवों को दान कर दिए। गांव वालों ने इन पैसों को नहर की सफाई और मरम्मत में खर्च किया। हो सकता है कि इससे काफी कम लोगों को फायदा हो, लेकिन हमारी आने वाली पीढ़ी कम से कम इससे कुछ तो सीख लेगी।’
(साभार – योर स्टोरी)