भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड लूईस माउंटबेटन की पुत्री के मुताबिक जवाहरलाल नेहरू और एडविना माउंटबेटन आपस में प्रेम करते थे और एक-दूसरे का काफी सम्मान करते थे। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि उनके बीच के रिश्ते कभी भी जिस्मानी नहीं रहे क्योंकि वे कभी अकेले नहीं मिले थे।
पामेला कहती हैं, मैंने अपनी मां एडविना एश्ले और नेहरू के बीच गहरे संबंध विकसित होते हुए देखा था। उन्हें पंडितजी में वह साथी, आत्मिक समानता और बुद्धिमतता मिली, जिसे वह हमेशा से चाहती थीं। उन्होंने बताया कि मां को लिखे नेहरू के एक पत्र को पढ़ने के बाद मुझे इस बात का एहसास हुआ कि पंडितजी और मेरी मां किस कदर आपस में प्रेम करते थे और एक-दूसरे का सम्मान करते थे।
‘डॉटर ऑफ एंपायर : लाइफ एज ए माउंटबेटन’ नामक अपनी पुस्तक में पामेला ने लिखा है कि मेरी मां या पंडितजी के पास जिस्मानी संबंधों के लिए समय नहीं था, दोनों अकेले में कम ही होते थे। दोनों हमेशा कर्मचारियों, पुलिस और दूसरे लोगों से घिरे होते थे।
पामेला की यह पुस्तक ब्रिटेन में पहली बार 2012 में प्रकाशित हुई थी। अब यह पुस्तक पेपरबैक की शक्ल में भारत आई है। माउंटबेटन के एडीसी फ्रेडी बर्नबाई एत्किन्स ने पामेला को बताया था कि नेहरू और उनकी मां का जीवन इतना सार्वजनिक था कि दोनों के बीच जिस्मानी रिश्ते संभव ही नहीं थे।
पामेला ने किताब में लिखा है कि माउंटबेटन परिवार के विदाई समारोह में नेहरू ने सीधे एडविना को संबोधित किया था। उन्होंने अपने संबोधन में कहा था कि आप (एडविना) जहां भी गई हैं, आपने उम्मीद और उत्साह जगाया है। कहते हैं कि माउंटबेटन जब भारत के अंतिम वायसराय नियुक्त होकर आए थे, उस समय पामेला हिक्स नी माउंटबेटन करीब 17 साल की थीं।
नेहरू को पन्ने की अंगूठी भेंट करना चाहती थीं एडविना
पामेला ने किताब में लिखा है कि भारत से जाते हुए एडविना अपनी पन्ने की अंगूठी पंडितजी को भेंट करना चाहती थीं। हालांकि वह यह भी जानती थीं कि नेहरू इसे स्वीकार नहीं करेंगे। इसी वजह से उन्होंने वह अंगूठी उन्होंने इंदिराजी को दे दी थी। उन्होंने इंदिराजी से कहा था कि यदि पंडितजी कभी भी वित्तीय संकट में पड़ते हैं, तो उनके लिए इसे बेच दें क्योंकि वे अपना सारा धन बांटने के लिए चर्चित हैं।