राजस्थान के गांवों की सूरत बदल रही है 25 साल की तन्वी

तन्वी जदवानी 25 साल की हैं। राजस्थान के कम विकसित गांवों में जाकर कमाल का काम कर रही हैं। शिक्षा का अधिकार, सबका अधिकार। तन्वी इस नारे को अपने जीवन का मूलमंत्र समझती हैं। उन्होंने शिक्षा के लिए उदासीन और बाल श्रम के दंश में जकड़े गांव के बच्चों को उनका पढ़ाई-लिखाई का हक दिलाने के लिए बीड़ा उठाया है।

योरस्टोरी से बातचीत में तन्वी ने बताया कि एक पत्रकार के रूप में प्रशिक्षित होने के नाते मुझे समस्याओं की तलाश करना सिखाया गया था। जो कि वास्तव में मैंने तब करना शुरू किया जब मैंने चुरु, राजस्थान के दूर गांवों में स्थित स्कूलों में काम करना शुरू कर दिया। यहां मैंने बच्चों की मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक वृद्धि से संबंधित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया। वहां सभी पंद्रह कक्षाओं में बच्चे अपनी क्षमता से कम प्रदर्शन कर पा रहे थे। वे बड़े उदासीन से रहते थे, क्लास में बहुत कम ध्यान देते थे और पढ़ाई के दौरान उन्होंने कभी भी कोई सवाल नहीं पूछते थे। लेकिन फिर भी वो रचनात्मक थे और प्रकृति के बारे में उत्सुक रहते थे। मैं उनको नए-नए क्राफ्ट सिखाती थी, उसके लिए वो बड़े उत्साह से हमेशा तत्पर रहते थे। उनकी इस रुचि को देखकर मैंने अपने कक्षाओं में औपचारिक पढ़ाई पर थोड़ा ब्रेक लगा दिया और खेल-खेल में कलात्मक कृतियां तैयार करने पर ज्यादा जोर देने लगी।

तन्वी ने कक्षाओं में बच्चों के साथ ड्राइंग बनाना शुरू कर दिया। उन्हें न सिर्फ दृश्यावली को चित्रित करना सिखाया जाता, बल्कि उनके घरों, परिवार के सदस्यों, मित्रों और पालतू जानवरों को चित्रित करने के लिए भी प्रेरित किया गया। तन्वी ने बच्चों से उनके परिवार के सदस्यों के साथ संबंधों के बारे में बात करना शुरू कर दिया। वो बच्चों के साथ फिल्में देखती हैं और खिलौने बनवाती हैं। बच्चे उन जानवरों के मुखौटे भी बनाते हैं जो वो उस दिन के लिए बनना चाहते हैं। तन्वी ने एक बहुत ही प्यारी रणनीति अपनाई। उन्होंने बच्चों के घरों और परिवार के बारे में एक दूसरे की कहानियों को बताया और इस तरह की गतिविधियों से वो इस बात को समझने के करीब पहुंच गईं कि बच्चे कैसे सोचते हैं, उन्हें किस प्रकार प्रभावित किया जा सकता है और वे क्या पसंद करते हैं और नापसंद करते हैं आदि। तन्वी ने योरस्टोरी से बातचीत में बताया, जल्द ही बच्चे मेरे साथ खुलने लगे और मुझसे प्रश्न पूछे और कक्षा में काफी अधिक ध्यान देने लगे ।

लेकिन हमारी मुलाकात के दौरान मैंने बच्चों के बारे में जाना, उन सब बातों ने मुझे हिलाकर रख दिया। मुझे पता चला कि मेरी कक्षा में सात साल के बच्चों ने खेतों में अपने माता-पिता के साथ कड़ी मेहनत की है, स्कूल के बाद कई किलोमीटर चलकर मवेशी चराने जाते थे। दस साल की छोटी सी उम्र की बच्चियों ने अपने परिवार के लिए पूरा भोजन पकाया करती हैं। उस समय के आसपास, मेरे तीन छात्रों की तेरह साल में ही शादी कर दी गई थी। इस वजह से उन्होंने स्कूल में आना बंद कर दिया था। कुछ बच्चों के माता-पिता शराबी थे, जो घर में नशे में आते थे और नशे में उनको पीटते भी थे। कुछ बच्चों के माता-पिता ऐसे भी थे, जिन्होंने अपनी लड़कियों को घर के बाहर खेलने की इजाजत नहीं दी थी।

तन्वी घंटों इस बात को समझने में लगा देती थीं कि स्कूल के बाद बच्चे कहां समय बिताते हैं को और स्कूल के पर्यावरण पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है। उन्हें पता चला कि इन सभी अनुभवों में एक बात कॉमन थी कि बच्चों पर घर में बहुत कम ध्यान दिया जाता था और उन्हें अक्सर कठिन परिश्रम, शारीरिक और मानसिक हिंसा का सामना करना पड़ता था। और जिन सरकारी स्कूलों में वे पढ़ते थे, वे बेहतर नहीं थे। यहां उन्हें अपने शैक्षणिक प्रदर्शन के लिए दंडित किया गया। इसमें कोई आश्चर्य नहीं था कि उनके पास इतना कम आत्मविश्वास था और उनके लिए पढ़ाई को गंभीरता से लेना बहुत कठिन था। तन्वी को जल्द ही ये एहसास हुआ कि इस तरह का बचपन उनके मानस पर गहरा असर छोड़ सकता है।

इन सबने तन्वी को सरकारी स्कूलों में सहायता प्रणाली शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया। तन्वी बताती हैं कि मुझे पता था कि मैं उन समस्याओं की हल नहीं कर सकती, जो इन बच्चों को घर पर झेलनी पड़ती है लेकिन अगर मैं स्कूल को उस जगह में बदलने की दिशा में काम कर सकती हूं जहां बच्चों के मन को समझने वाला कोई हो। इससे उन्हें भावनात्मक और मानसिक रूप से बढ़ने में मदद मिल सकती है। ताकि उनको अपनी बाधाओं से लड़ने और सफल होने के लिए उचित मौका मिले। मैंने ऐसा करने के लिए तन्वी ने कला का इस्तेमाल किया। वो बच्चों को अपने विचारों और भावनाओं को व्यक्त करने के लिए इन कलाकृतियों को माध्यम बनाने के लिए प्रेरित करने लगीं। तन्वी ने इस प्रयोग में अपने अद्भुत कलाकारों दोस्तों से मदद ली जिन्होंने बच्चों के साथ कला कार्यशालाएं कीं, जहां उन्होंने उन्हें सिखाया कि कैसे एक दूसरे के प्रति संवेदनशील होना है, टीम में कैसे काम करना है, पढ़ाई पर लगातार कैसे केन्द्रित रहना हैऔर खुद को और बेहतर कैसे समझना है। तन्वी ने पाया कि इसके बाद स्कूल के वातावरण में सकारात्मकता आ गई थी। यहां तक कि स्टाफ के सदस्य भी अधिक हंसमुख नजर आने लगे थे। और बच्चों में भी सकारात्मक बदलाव दिखने लगे थे। वे विद्यालय की गतिविधियों में ज्यादा से ज्यादा भाग लेने लगे और अब वो अधिक चौकस और कम हिंसक थे। अब उनमें आत्मविश्वास भी बढ़ गया था।

इन सकारात्मक बदलावों ने मुझे राजस्थान के सभी स्कूलों के लिए कला के माध्यम से सामाजिक और भावनात्मक सीखने की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित किया। यह देखते हुए कि कला अभ्यास से मानसिक और भावनात्मक विकास होता है, जिनसे लाभ पाकर बच्चे कक्षा में ज्यादा अच्छा परफॉर्म करते हैं। मैंने इसे एक समस्या का समाधान के रूप में देखा। और इसलिए मेरी फेलोशिप के बाद, मैं उदयपुर में स्थानांतरित हो गई। ये स्थानीय कलाओं से समृद्ध जगह थी और मैंने यहां चार स्कूलों में काम करना शुरू कर दिया। हमारी परियोजना का विचार विभिन्न कला रूपों के माध्यम से सामाजिक और भावनात्मक कौशल सीखना था। हमारी परियोजना के माध्यम से, हम विभिन्न कला रूपों के साथ प्रयोग करते हैं, प्रतिभाशाली कलाकारों के साथ सहयोग करते हैं और बाद में एक पाठ्यक्रम बनाते हैं, जिससे शिक्षकों को बच्चों को सिखाना आसान हो जाता है।

तन्वी कलाकारों के लिए एक सामाजिक मंच बनाकर उदयपुर के अधिक से अधिक सरकारी स्कूलों में अपने कामों का विस्तार करना चाहती हैं। तन्वी के प्रोजेक्ट में चार लोगों की एक टीम हैं जो इस परियोजना पर पूर्ण समय काम करती है। ये लोग वर्तमान में अपनी परियोजना के लिए वित्तीय सहायता की तलाश कर रहे हैं और समर्थन हासिल करने के लिए एक क्राउड फंडिंग अभियान चला रहे हैं।

(साभार – योर स्टोरी)

 

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