ग्रामीण महिलाओं के लिए प्रोफेसर ने छोड़ी अमेरिका की नौकरी

केरल के पलक्कड़ इलाके में एक समय घर के बाहर काम करने में पुरुषों का वर्चस्व रहा करता था। लेकिन आज महिलाएं घर से बाहर निकलकर काम कर रही हैं और पैसे कमाकर घर भी चला रही हैं। इस बदलाव का सारा श्रेय डॉक्टर प्रभाकर को जाता है। डॉ. प्रभाकर ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने अमेरिका में प्रोफेसर की अच्छी खासी नौकरी छोड़ गांव की महिलाओं का उत्थान करने और उन्हें सशक्त बनाने का काम शुरू किया है। एक बार वह गांव आए थे तो उन्होंने देखा कि गांव की महिलाओं की हालत काफी दयनीय है और उन्हें अपनी आर्थिक जरूरतों के लिए पुरुषों पर निर्भर रहना पड़ता है। उन्होंने देखा कि गांव की लड़कियां स्कूली शिक्षा से वंचित रह जा रही हैं।

डॉ. प्रभाकर कहते हैं, ‘जब मैं केरल वापस आया तो देखा कि यहां बदलाव की सख्त की जरूरत है। मैं बांग्लादेश के माइक्रो फाइनैंस बैंकर यूनुस खान से काफी प्रभावित था। इसलिए मैं बांग्लादेश गया और उनके साथ 6 महीने रहकर माइक्रो क्रेडिट मॉडल को अच्छे से समझा। मैं उस मॉडल को केरल में भी लागू करना चाहता था। मुझे मालूम था कि इसे सफल तरीके से लागू करना एक चैलेंज था, लेकिन हर हाल में मैं इसे करना चाहता था।’ डॉ. प्रभाकर ने 1996 में गांव की गरीब महिलाओं को सपोर्ट करने के लिए सोसाइटी फॉर रूरल इम्प्रूवमेंट नाम से एक नॉन प्रोफिट ऑर्गनाइजेशन की शुरुआत की।

शुरु करने से पहले अपने गांव की महिलाओं को देखकर डॉ. प्रभाकर को लगा कि महिलाओं को केवल सशक्त ही नहीं बनाना है बल्कि उन्हें आर्थिक आजादी और स्थिरता भी प्रदान करनी है जिससे वे अपनी जिंदगी के स्वतंत्र निर्णय ले सकें। इस मॉडल के जरिए उन्होंने महिलाओं को मुफ्त में ऋण देना शुरू किया। उन्होंने शुरुआत में अपनी जेब से 2 लाख रुपये के ऋण बांट दिए। वह कहते हैं, ‘हम महिलाओं को सिर्फ ऋण देते हैं, उस ऋण का कैसे और किस काम में इस्तेमाल करना है इसकी उन्हें पूरी आजादी रहती है। वह जो व्यवसाय चाहे शुरू कर सकती हैं। इनमें से कुछ महिलाएं चाय की दुकान खोल लेती हैं, कुछ छोटा-मोटा काम शुरू कर देती हैं। हम मैनेजर बनने की कोशिश नहीं कर रहे हैं बल्कि हम सिर्फ एक सहायक बने रहना चाहते हैं।’

जब उनसे बिना किसी गारंटी के लोन देने में जोखिम के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ऋण वापस करने की दर 99 % है। उन्होंने बताया कि लाभार्थियों की पहचान करना थोड़ा कठिन काम है और इसके बारे में लोगों की और उनकी आवश्यकताओ के बारे में रिसर्च करनी पड़ती है। डॉ प्रभाकर बताते हैं कहते हैं, ‘हम ऐसे लोगों की पहचान करते हैं जो रिमोट एरिया में रहते हैं और जहां अभी तक कोई सुविधाएं नहीं पहुंची हैं।’ डॉ प्रभाकर उन महिलाओं की खास तौर पर मदद करते हैं जिनके पति या जिनका परिवार उनका साथ नहीं देता है।

महिलाओं की जरूरत के मुताबिक सोसाइटी फॉर रूरल इम्प्रूवमेंट के लोन मॉडल को कस्टमाइज किया गया है। इसके अंतर्गत कम से कम 10,000 का लोन दिया जाता है जिसे साप्ताहिक रूप  से भरना होता है।

डॉ. प्रभाकर पर्सनली महिलाओं के संपर्क में रहते हैं और उनसे काम की प्रगति के बारे में जानकारी लेते रहते हैं और यही उनकी सफलता का मंत्र है। सोसाइटी फॉर रूरल इम्प्रूवमेंट मॉडल के जरिए महिलाओं को दिये जाने वाले लोन की ब्याज दर काफी कम है। इसके साथ ही वे महिलाओं को सामूहिक रूप से बचत करने के लिए प्रेरित भी करते हैं।

पूवनकोड गांव की रहने वाली 40 साल की वेलम्मा ने गाय पालने के लिए 5,000 का छोटा लोन लिया था। उन्होंने कुछ महीने में ही लोन चुकता कर दिया। उसके बाद उन्होंने बकरी पालने के लिए लोन लिया। धीरे-धीरे उनका बिजनेस बढ़ता गया और फिर उन्होंने 20,000 का लोन ले लिया। इन पैसों से उन्होंने सुपारी से बने उत्पादों को बनाने की मशीन खरीद ली। अब उनके साथ दो और महिलाएं भी काम करती हैं।

वेलम्मा सैकड़ों महिलाओं के बीच एक उदाहरण हैं। उनके जैसी तमाम महिलाएं डॉ. प्रभाकर के जरिए सशक्त हो रही हैं। डॉ, प्रभाकर कहते हैं कि इस पुरुषवादी समाज में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए वह हमेशा काम करते रहेंगे।

(साभार – योर स्टोरी)

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