रहस्यलोक में ले जाने वाली कलाकृतियों का जादू

अपराजिता की ओर से

अभिज्ञात के नाम से प्रख्यात डॉ. हृदय नारायण सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं जो देश केे प्रतिष्ठित अखबारों और मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं। कवि और लेखक होने के साथ गीतकार और अभिनेता भी हैं। बतौर चित्रकार यह उनकी प्रतिभा का एक और शानदार रूप है…मीडिया की आपाधापी के बीच इतना कुछ कर लेना अपने -आप में करिश्मा है। हाल ही में इनके चित्रों की प्रदर्शनी लगी। प्रदर्शनी की कुछ तस्वीरें और जानकारी हम दे रहे हैं…। अभिज्ञात जी की सृजनात्मकता और भी प्रसारित हो…अपराजिता की शुभकामना है –

रहस्यलोक में ले जाने वाली कलाकृतियों का जादू

भोपाल की कलाकार सबा इफ़्तिखार और कोलकाता के डॉ.हृदय नारायण सिंह की पेंटिंग्स सिटी आर्ट फैक्ट्री के तत्वावधान में हाल ही में मिथ, होटल हिन्दुस्तान इंटरनेशनल, कोलकाता में प्रदर्शित हुई।  इसमें सबा की  इनिग्मा सिरीज की पेंटिंग्स शामिल थीं। कलाकृति शृंखला नाम के मुताबिक ही एक रहस्यलोक और गूढ़प्रश्नों के प्रति लोगों की उत्सुकता जगाता है। इन पेंटिंग के सम्बंध में सबा कहती हैं-पुराने और जर्जर दरवाज़ों के पीछे मेरे रिश्ते और कीमती यादें हैं।

 

इन दरवाज़ों को खोलकर तब तक कोई नहीं आ सकता जब तक मैं न चाहूं। हालांकि दरवाज़े, खिड़कियां और ताले बंद हुए हैं और जर्जर दिखायी देते हैं लेकिन फिर भी खूबसूरत हैं और मज़बूती से खड़े हैं। लोगों को वहम हो सकता है कि इनके पीछे बंदिशें हैं लेकिन उनके पीछे मेरी आज़ादी महफूज़ है।

फाइनआर्ट्स में बरकतुल्ला यूनिवर्सिंटी से फ़ाइनआर्ट्स में गोलमैलिस्ट सबा ने कई कलारूपों का फ्यूजन किया है। देश- विदेश की कई कलाप्रदर्शनियों में उनकी कृतियां प्रदर्शित हुई हैं।डॉ.हृदय नारायण सिंह की कैनवास पर एक्रेलिक से बनी कलाकृतियों में अमूर्त व मूर्तन का तादात्म्य प्रभावित करता है। सुर्ख गाढ़े वहल्के दोनों तरह के रंगों के प्रयोग में समान रूप से सिद्धहस्त हैं। उनकी कृतियों में दुःख के कई रूप दिखते हैं तो कोमल अनुभूतियां भी हैं।

डॉ. सिंह का अपनी कला के बारे में कहना है कैंसर से जूझती मां की ओर मृत्यु के बढ़ते अदृश्य कदमों की आहटों को सुननेऔर मौत की अमूर्त आकृतियों को देखने की कोशिश में एक ऐसे संसार को महसूस किया जो आसपास है पर अनुद्घाटित है। मां कीअस्वस्थता और उसके दुख से निजात के लिए उस ईश्वरीय सत्ता के आगे में नतमस्तक हुआ जिसे मेरी बौद्धिकता सदैव नकारतीरही थी। रहस्य, भय, विस्मय, अलौकिकता और जीवन से जुड़ी घटनाओं के पूर्व अमूर्त संकेत , कभी रंगों, कभी रोशनी, कभीछाया के तौर पर मेरी मनोभूमि में समा गये और वे अवचेतन में मेरी पेंटिंग्स व रंगों के चयन में अपनी अबूझ भूमिका निभाते लगतेहैं। मुझे लगता है कैनवास एक प्लेनचिट है जिसके आगे बैठते ही परिचित-अपरिचित रूपाकारों, रंग व रेखाएं, रोशनी व अधेरेअनायास चले आते हैं। पहले मेरी कला में बाहर की ही दुनिया थी अब बाहर और भीतर का संसार गड्डमड्ड है और वहीं मेरी कला मेंप्रकट होता है।

अमूर्तन के प्रति दिलचस्पी उस अदृश्य को देखने और खोजने का भी यत्न है जो ईश्वर की अदृश्य सत्ता से मेलखाता है। कुछेक राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय कला प्रदर्शनियों में भागीदारी। साहित्य सृजन से भी जुड़ा रहने के कारण एक कोमलता औरस्निग्ध भाव रंगों के चयन और स्पर्श में शामिल है।

आर्ट शो में शामिल द वूमेन, दे फैंसी, बॉडी विद दि सोल, नेचर एंड वूमेन, दसाफ्ट आदि कलाकृतियों में लोगों ने दिलचस्पी ली। डॉ.सिंह कलकत्ता विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में पीएच.डी हैं। कला कीऔपचारिक शिक्षा उन्होंने इंडियन आर्ट कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल तथा रियलिस्टिक आर्टिस्ट होरीलाल साहू से ली है।

 

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